Sunday, August 31, 2025

एक कवि का विचार

एक कवि का विचार

एक कवि कहता है, धरती स्वतंत्र,
न ताला, न बंधन, न कोई सीमा।
पहाड़ उठते, नदियाँ बहतीं,
सांस लेने वालों के लिए सब उपहार।

टोरंटो झील शांत जल में चमके,
हंस तैरें सपनों की तरह थमे।

कोई अकेला इसका मालिक नहीं,
यह रेत की तरह सबमें बही।
पक्षी, मानव और वृक्ष मिलकर,
आकाश बाँटें ऋतु के संग।

कोमल पर दृढ़ स्वर गूंजता है,
“यह धरती सबकी है।”

जी आर कवियुर 
31 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

जिज्ञासा

जिज्ञासा

केरल की भूमि से आया कवि,
टोरंटो का शहर लाए नवाबी।

अजनबी भी मिलते मुस्कान लिए,
“धन्यवाद” और “माफ़ी” हर जगह सजी।

सड़कें चलती क्रम में शांत,
सिग्नल चमकते मार्गदर्शन साथ।

ट्राम चलें निःशब्द, ट्रेन दौड़े तेज़,
दुकानों में गूंजे मधुर स्वर का लेज़।

बगीचे में शांति, खुला आकाश,
झील में तारे जैसे चमकते प्रकाश।

हर पल देखता मानवीय ममता,
दयालुता बिखरे चारों ओर गगन।

जीवन व्यय भारी प्रतिदिन,
जनमभूमि से तुलना में बहुत दूर कहीं।

जी आर कवियुर 
30 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

राधारानी का जन्मदिन

राधारानी का जन्मदिन

कृष्ण का हृदय चुराया गया,
कौन लिया, कोई नहीं जानता,
लेकिन उनके जन्मदिन के जश्न के लिए,
उन्होंने बरसाना में सुंदर रूप से सजधज किया।

हर जगह “राधे राधे”, राधारानी का नाम,
इसके साथ कृष्ण के जयघोष,
भक्तों ने रंग फैलाए,
वाद्यध्वनि के साथ भजन आकाश तक गूँजे।

पथ के हृदय पर फूल बिखरे,
स्नेह की बूँदों से भर गया,
भक्तिगीतों की लय पर नृत्य हुआ,
कृष्ण का प्रेम पूरी तरह गाया गया।

घंटियों की ध्वनि से वातावरण भर गया,
भक्तों ने कृष्ण और राधा को स्मरण किया,
पवित्र भूमि पर ठंडी हवा फैली,
हृदय हमेशा आनंद से भर गए।

जी आर कवियुर 
31 08 2025

कल्पवृक्ष

कल्पवृक्ष

नारियल का पेड़, कल्पवृक्ष, ऊँचा और उजला,
प्रकृति का उपहार, आश्रय और प्यारा।
पत्ते हवा में धीरे-धीरे नाचते हैं,
घर बनाने और छाया देने में मदद करते हैं।

नारियल देता मीठास, पानी से स्वास्थ्य बढ़ता है,
तना मजबूत, घरों को बनाता है सदा।
छिलका, रेशा और खोल—कुछ भी व्यर्थ नहीं,
खोल बर्तन बनते हैं, रेशा काम आता है सभी में।

जड़ें धरती को पकड़ती हैं, फूल फैलाते सुगंध,
इस पेड़ का हर हिस्सा उपयोगी और अनुपम।
बारिश और धूप का आशीर्वाद पाकर,
नारियल का पेड़, हम सदा तेरा आभार मानते हैं।

जी आर कवियुर 
30 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

री याद के सिलसिले" (ग़ज़ल )

री याद के सिलसिले" (ग़ज़ल )

रोते हैं तेरी याद में, मगर अश्क कहाँ छुप गए
दिल ये नाचीज़ क्या कहे, अभी सोचते रह गए

तेरी गली से लौटकर, हर सफ़र अधूरा रहा
राह में जो थे उजाले, सभी ख़्वाब में रह गए

इक मुस्कुराहट तेरी, हज़ार दर्दों की दवा
तेरे बिना ये ज़िंदगी, सवालों में बह गए

चाँदनी भी शरमा गई, तेरी सूरत देखकर
रात की तन्हाइयों में, सितारे भी थम गए

दिल के जख़्म क्या कहें, रंगीन ग़ज़ल बन गए
तेरे हुस्न के तसव्वुर से, दर्द भी संवर गए

अब 'जी आर' की ग़ज़ल में, तेरी यादों का रंग है
तेरे इश्क़ के सिलसिले, हर शे'र में ढल गए

जी आर कवियुर 
30 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Friday, August 29, 2025

"तेरे प्यार के अफ़साने" ( ग़ज़ल )

"तेरे प्यार के अफ़साने" ( ग़ज़ल )

निगाहें ढूंढ रही हैं तेरे प्यार के अफ़साने,
लबों पे आ ही गए हैं तेरे प्यार के अफ़साने।

ग़मों की धूप में दिल को मिली तेरी पनाहें,
उम्मीद गा रही हैं तेरे प्यार के अफ़साने।

हवाओं में भी तेरी महक का सिलसिला है,
फ़िज़ाएँ दोहरा रही हैं तेरे प्यार के अफ़साने।

तड़प के रात गुज़ारी, दुआओं से सँवारा,
सितारे सुन रहे हैं तेरे प्यार के अफ़साने।

"जी आर" ने भी लिखे हैं दिल के सच्चे तराने,
ग़ज़ल में ढल गए हैं तेरे प्यार के अफ़साने।

जी आर कवियुर 
29 08 2025
(कनाडा , टोरंटो)


सपनों के रंग

सपनों के रंग

ओणम की यादों में
तुम आते हो मेरे प्यार की तरह
दिल में फूलों की पंखुड़ियों की तरह
खिलते चुपचाप, वही तुम हो।

फूलों से सजे हाथों में
तुम मुस्कुराए फूलों की माला जैसे
ओणम के गीतों में
मिठास फैलाते हुए, वही तुम हो।

नाव के गीतों की लहरों में
संगीत की तरह बहते हुए, वही तुम हो
ओणम की धूप में चमकते हुए
जीवन में आनंद भरते हुए, वही तुम हो।

ओणम के खाने की खुशबू
दिल में फैलती हुई
हर स्वाद में शहद की तरह
तुम आते हो प्यार के गीत की तरह।

जी आर कवियुर 
29 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, August 28, 2025

चाय, अख़बार और ज़िंदगी

चाय, अख़बार और ज़िंदगी

चाय का प्याला और अख़बार,
देते थे खुशियों के उपहार,
आज उन्हें बदल दिया है,
चमकते पर्दों ने बार–बार।

बैठें या फिर सोते हों हम,
हाथों में बस यही संग्राम।
राह बदलती, सपने खोते,
मानव मूल्यों के दीप बुझे,
रिश्ते बन गए बस एक नाम।

चाय की गरमी भी अब तो,
दिल को ठंडक दे नहीं पाती।
शब्द बने बस छोटी पोस्टें,
मुस्कानें चिन्हों में सिमट जाती।

क्या काग़ज़ की स्याही महके,
एक पुराने दौर की तरह?
क्या लौटाएँ वही दिन फिर से,
मानवता की वो रौशनी?

जी आर कवियुर 
28 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)


तेरी रहमत का सहारा" ( ग़ज़ल)

तेरी रहमत का सहारा" ( ग़ज़ल)

तेरी रहमत का सहारा है, ऐ खुदा तेरी रहमत का सहारा है।
हर दुख में भी दिल को चैन मिला, जब याद तेरा प्यारा है।

अंधियारे में जो दीप जला, तेरे नाम का उजियारा है,
तेरे दर से बढ़कर कोई ठिकाना, न और कोई किनारा है।

हर सांस में तेरा जप है बसा, हर धड़कन तेरा पुकारा है,
तेरी चाहत में ही जीना हमें, तेरी चाहत ही हमारा है।

राहे-सफ़र में तू हमसफ़र, तू ही मंज़िल का इशारा है,
तेरी नज़रों से ही खिलता चमन, तेरी करुणा का गुज़ारा है।

"जी आर" के लफ़्ज़ में गूँजे तेरा नाम, यही सबसे प्यारा है,
तेरी रहमत का सहारा है, ऐ खुदा तेरी रहमत का सहारा है।

जी आर कवियुर 
25 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, August 26, 2025

तेरी यादें( ग़ज़ल)

तेरी यादें
( ग़ज़ल)

अश्कों में भी छुपा न सके तेरी यादें,
दिल से कभी मिटा न सके तेरी यादें।

रातों की तन्हाई में जगाती हैं तेरी यादें,
ख़्वाबों में चुपके से चली आती हैं तेरी यादें।

मौसम के हर झोंके में बसती हैं तेरी यादें,
फूलों की ख़ुशबू में महकती हैं तेरी यादें।

ज़ख़्मों को भरने न दिया अब तक तेरी यादें,
जाने क्यों दिल को सताती हैं तेरी यादें।

सदियों से दिल के सफ़्हों पे लिखी हैं तेरी यादें,
आँखों में अश्क़ बनकर ढली हैं तेरी यादें।

"जी आर" भी अब जी रहा है इन्हीं सायों में,
रूह का हिस्सा बन गई हैं तेरी यादें।


जी आर कवियुर 
 26 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, August 25, 2025

अकेले विचार – 107

अकेले विचार – 107

कल की योजना जब आँखों में बसती,
दिल की उमंगें फिर नई राह रचती।
रास्ते बदलें, दिशा भी भटके,
सूरज की किरणें उम्मीदें चमकें।

आस्था जगेगी, मन होगा ऊँचा,
रात ढले तो आएगा पूरब सांचा।
मुस्कान लाएगी ज्ञान का उजाला,
शक्ति बहेगी जैसे नदियों का प्याला।

कहानियाँ गूंजें, तारे दमकें,
भविष्य के द्वार सबके लिए खुलें।
यात्रा बढ़ेगी दीप लिए साथ,
प्रेम रहेगा जीवन का पथप्रदात।

जी आर कवियुर 
24 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 108

अकेले विचार – 108

शब्द हाथों से नहीं छुए जाते,
फिर भी हृदय में गहराई तक उतर जाते।

मौन अक्षर अग्नि समाए,
आशा जगाएं, स्वप्न सजाए।

तालों के बिना द्वार खोलें,
अंतरतम के चित्र बोलें।

धीरे सुर मरहम बन जाते,
दुख हरते, जीवन सजाते।

ना कोई सीमा, ना कोई रोक,
शब्द बनें दीप, अनंत शोक।

जी आर कवियुर 
25 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

पिंजरा

पिंजरा

सुप्रभात के आकाश में पिंजरा छू रही किरण,
अंदर पंख फड़फड़ाए और गीत गूंजा।

सुनहरी किरण छूई लोहे को,
मन में स्वतंत्रता का सपना उजागर हुआ।

पिंजरे में पक्षी पंख फैलाकर कूदा,
विचार दूर-दूर तक उड़ गए।

बच्चे की आंखें खुशी से चमकीं,
मधुरता सुनकर दिल कांपा।

हमेशा की चाह खुली उड़ान के लिए,
भोर की रौशनी में जंगल की ओर।

गीत खत्म होने पर, मौन छा गया,
सिर्फ यादें कानों में घुल गईं।

जी आर कवियुर 
25 08 2025
( कनाडा , टोरंटो)

प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

निर्मल हवा में आशा तैरती,
क्षण रुकते दीवारों पर छाया बन।
नज़रें भटकें अनंत गगन में,
सपने फुसफुसाएँ शांत रजनी में।

कदम ठहरें सुनसान राहों पर,
समय बहे अदृश्य नदी जैसा।
दिल कांपे कोमल चाहत में,
बादल घिरें दूर की खामोशी में।

हाथ तरसें भूले स्पर्श हेतु,
तारे झिलमिलाएँ गुप्त गीत लिए।
धैर्य खिले लम्बी घड़ियों में,
प्रतीक्षा बसती कोमल आत्माओं में।

जी आर कवियुर 
25 08 2025
( कनाडा , टोरंटो)

अतिमोह

अतिमोह

आकांक्षा छुपी हुई अग्नि-सी जलती,
सपनों की डोर गगन तक चलती।

अनंत लाभ पाने को हाथ बढ़ जाते,
हृदय सुख भूलकर दुःख अपनाते।

स्वर्ण की चाह जब नभ छूने लगती,
सत्य बिखरकर झूठों में ढकती।

अंधे मार्ग पर कदम डगमगाते,
शांति खोकर दिन रात में समाते।

लोभ रचता आत्मा के चारों ओर दीवार,
छाया निगलती हर मंज़िल हर बार।

प्रेम ही तोड़े बंधन की बेड़ी,
सरल जीवन देता पीड़ा से मुक्ति स्थायी।

जी आर कवियुर 
25 08 2025
( कनाडा , टोरंटो)

Sunday, August 24, 2025

तेरे गीत की मधुरिमा

 तेरे गीत की नाजुक लय उजाले में चमकती है,

फूलों की खुशबू बिखरती है, हल्की हवा में बहती।


सूरज की रौशनी में रंग बदलते हैं और झिलमिलाते हैं,

नदियाँ हँसते हुए समुद्र की ओर बहती हैं।


बारिश धीरे-धीरे गिरती है, मिट्टी की खुशबू विचारों में फैलती है,

सवेरे की किरण अंधकार को दूर कर देती है।


हरी पत्तियों की आवाज़ दिल को छूती है,

पंखुड़ियों के बीच छोटे पल खुशी से फैलते हैं।


मन में यादों के पंख खिलते हैं,

रात की मौनता छिपे सपनों को छूती है।


प्रकृति के कोमल, घने, जादुई जाले में,

हर सांस आशीर्वाद के गीत के रूप में उठती है।


जी आर कवियुर 

24 08 20

25

(कनाडा , टोरंटो)

मीनार की लिफ्ट"

 मीनार की लिफ्ट"


हर मंज़िल पर लोहे का दरवाज़ा

खुलता विशाल,

फौरन बंद हो जाता,

स्वागत करते क़दम भीतर आते।


अलग–अलग ज़बानों की आवाज़ें,

भिन्न–भिन्न चेहरे,

एक ही चौकोर फ़र्श पर

सभी साथ सिमट जाते।


बच्चे की हँसी,

दादाजी की थकी साँस,

मोहब्बत की मुस्कानें,

ग़ुस्से की चिंगारियाँ।


बड़े–छोटे बक्से लुढ़कते,

शॉपिंग बैग झूलते,

कठिन क्षण पीछा करते।


बातें इशारे करतीं,

ख़ामोश राज़ बाँटे जाते,

इच्छा की एक झलक,

ममता का एक हल्का स्पर्श।


ख़ुशियाँ ऊपर चढ़तीं,

ग़म नीचे उतरते,

सपने और बोझ

ख़ामोशी में संग चलते।


सुबह से गहरी रात तक,

लिफ्ट अनकही कहानियाँ सँभालती,

ज़िंदगियाँ उलझकर

गलियारों और कमरों में धड़कनों सी बहतीं।


हर बीते पल में,

हर मुस्कान, हर आँसू,

लोहे की ख़ामोश दीवारों पर

उभर जाते निशान—

जैसे वक़्त बहा ले गया ज़िंदगी के साये।


और एक दिन

जब दरवाज़ा आख़िरी बार बंद होगा,

लिफ्ट ख़ामोशी से सँजोए रखेगी

यादों के वो अमिट निशान।


जी आर कवियुर 

24 08 2025

Saturday, August 23, 2025

अकेले विचार – 106

अकेले विचार – 106

समय बहता है, लौटकर नहीं आता,
हर पल हमें कुछ नया सिखाता।

दोस्त चमकते हैं रात के सितारों की तरह,
दिल में भरते हैं गर्माहट और खुशी की तरह।

साथ बिताए पल और अनमोल हो जाते,
सफ़ेद बालों संग यादें फिर जगमगाते।

जवानी ढलती है पर हँसी रह जाती,
कमज़ोरी में भी तसल्ली मुस्कुराती।

ऋतुएँ बदलतीं, रिश्ते बने रहते,
ग़म घटते, दर्द भी हल्के पड़ते।

उम्र दिखाती है सच्चाई का नूर,
समय और दोस्त — ज़िंदगी के उज्ज्वल दस्तूर।

जी आर कवियुर 
24 08 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Friday, August 22, 2025

सजावट

सजावट

सूर्य की किरणें फूलों पर पड़कर मुस्कुरा रही हैं,
नदियाँ चाँदी जैसी चमक बिखेर रही हैं।
आभूषण हाथों में चमकते हुए झिलमिला रहे हैं,
पत्तियाँ सुनहरे रंग में धीरे-धीरे झूम रही हैं।

नीले आकाश के साथ मिलकर नृत्य कर रही हैं,
फूल हल्की हवा में धीरे-धीरे उड़ रहे हैं।
गर्मी की रौशनी धीरे-धीरे कमरे में फैल रही है,
तारे शाम के आकाश में मुस्कुरा रहे हैं।

सूक्ष्म तंतु में धीरे-धीरे कहानियाँ गुनगुना रही हैं,
रत्न रास्ता दिखाते हुए चमक रहे हैं।
प्रकृति सौम्य सुंदरता में लय पा रही है,
हर कोने में सरल और सुंदर रूप प्रकट हो रहा है।

जी आर कवियुर 
22 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

बहुत दुख की बात है

बहुत दुख की बात है

खाली छतों पर बारिश की बूँदें गूँजती हैं,
मृदु हवा भूले हुए सच को धीरे-धीरे जगाती है।

जिस रास्ते पर कभी उजाला फैला था, वह अब फीके रंग में ढल गया,
यादें ठहरी रहती हैं, नाचने से मना करती हैं।

आँखें शांत दर्द की कहानियाँ समेटे हैं,
दिल धीरे-धीरे उस मृदु बारिश में दर्द झेलता है।

जले हुए दीवारों से आवाजें बहती हैं,
समय धीरे-धीरे घूमता है, पर अंधेरा पुकारता है।

गहरे आसमान के नीचे जीवन धीरे-धीरे चलता है,
दुःख फैलने पर सपने विलीन हो जाते हैं।

फिर भी हर छाया में एक गीत बचा रहता है,
हानि की धुन, मीठा और क्षीण।

जी आर कवियुर 
22 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अष्टमुड़ी की यादें ( ग़ज़ल)

अष्टमुड़ी की यादें ( ग़ज़ल)


अष्टमुड़ी की लहरें गुनगुनातीं, दिल में बसी हर यादों के संग,
कवि का सपना बनकर मौन ठहरतीं, हर पल गूँजतीं हर यादों के संग।

एक अकेली नाव स्मृति-सी बहती, हर लहर में बसी हर यादों के संग,
उसकी पतवार झील पर कविता लिखती, जैसे गीतों में मिलती हर यादों के संग।

मैं खड़ा हूँ टोरंटो की नीली झील किनारे,
जहाँ कवियों ने भी लहरों में संगीत पाया हर यादों के संग।

पर वहाँ, केरल की उस संध्या में,
बगुले गाते हैं बिछड़े प्यार की तान हर यादों के संग।

हर ज्वार लौट आता है कहानियों के साथ,
जैसे चाँद पढ़े कोई पुरानी किताब हर यादों के संग।

छूटे हुए हर पल को फिर से जी लूँ मैं,
अष्टमुड़ी की उस छांव में, सुनहरी यादों के संग।

दिल कहता है लौट चलूँ वहाँ, जहाँ प्रेम की बूँदें अभी भी हैं हर यादों के संग,
जी आर गुनगुनाता है अपने मन में, बसी अष्टमुड़ी हर यादों के संग।

जी आर कवियुर 
22 08 2025 

(अष्टमुड़ी एक झील है केरल में )

अष्टमुड़ी का झील

अष्टमुड़ी का झील

अष्टमुड़ी की लहरें कविता-सी गुनगुनाती,
“वर्ड्सवर्थ” की सोच की तरह नरम।
नारियल की छाया जल पर गिरती,
कवि का सपना बनकर मौन ठहरती।

एक अकेली नाव स्मृति-सी बहती,
उसकी पतवार झील पर कविताएँ लिखती।
मैं खड़ा हूँ टोरंटो की नीली झील किनारे,
जहाँ कवियों ने भी लहरों में संगीत उतारा।

पर वहाँ, केरल की उस संध्या में,
बगुले गाते हैं बीते प्रेम की तान।
हर ज्वार लौट आता है कहानियों के साथ,
जैसे चाँद पढ़े कोई पुरानी किताब।

जी आर कवियुर 
22 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)


Thursday, August 21, 2025

अनंत अज्ञात

 अनंत अज्ञात


मौन तारकियाँ आकाश को छू रही हैं,

छायाएँ बह रही हैं उजाले को छोड़कर।

तारे जागते हैं अनंत नीर में,

अँधेरे में सपनों में गूँजते हैं शब्द।


पर्वत खड़े हैं प्राचीन ज्वाला को संभालते हुए,

नदियाँ बहती हैं बिना नाम के।

समय घुलकर छिप गया हवाओं में,

सवाल खड़े हैं बिना जवाब के।


पथ खुलते हैं दृष्टि से परे,

मन मिलकर अनुभव करता है अनंत प्रकाश।

रहस्य बुलाता है अज्ञात दुनिया से,

हृदय जागता है विशाल साहस में।


जी आर कवियुर 

22 08 202

5

( कनाडा, टोरंटो)




अनंत अज्ञात (ग़ज़ल)

 अनंत अज्ञात (ग़ज़ल)


मौन तारक़ियाँ बुला रही हैं अनंत अज्ञात,

छायाएँ छिप जाती हैं खोजते हुए अनंत अज्ञात।


सितारों की गूँज में खो जाती राहें,

सोचों में चमकता है अनंत अज्ञात।


पहाड़ खड़े हैं प्राचीन रहस्य को सँभालते हुए,

नदियाँ बहती हैं शांतिपूर्वक अनंत अज्ञात।


सवाल पूछे समय में घुलकर मिट जाते हैं,

उत्तर प्रकट होते हैं सिर्फ़ अनंत अज्ञात।


जब दिल खुलते हैं तो रोशनी फैलती है,

आत्मा महसूस करती है वही अनंत अज्ञात।


जी आर कहता है, हृदय में बसी कविताएँ,

सृष्टि की मौनता में गूँजता अनंत अज्ञात।


जी आर कवियुर 

22 08 2025

(कनाडा , टोरंटो)

Wednesday, August 20, 2025

यादों की महफ़िल ( ग़ज़ल)

यादों की महफ़िल ( ग़ज़ल)

काश तेरी यादों को ग़ज़ल में निखार लूं
कितनी भी कोशिश करूं, शेर को निखार लूं

हर जज़्बात छुपा के, तन्हाई में संवार लूं
इन अश्कों की बरसात में, दर्द को निखार लूं

तेरे हुस्न की तस्वीर, ख्यालों में उकेर लूं
दिल की वीरान गलियों में, प्यार को निखार लूं

वो बीते लम्हें जो छूट गए, यादों में सजाऊँ
हर पल की ख़ामोशी में, आवाज़ को निखार लूं

हवाओं से पूछ लूं मैं, तेरी खुशबू कहाँ खोई
इन मौसमों की बदलती राहों में, खुशियों को निखार लूं

अगर मंज़ूर हो तन्हा दिल को तेरे नाम कर दूँ
जी आर की इन लकीरों में, मोहब्बत को निखार लूं

जी आर कवियुर 
20 08 2025
( कनाडा,टोरंटो)

Tuesday, August 19, 2025

मेरे विचारों की कविता

मेरे विचारों की कविता

“नाम में क्या रखा है” —
वक़्त मिटा दे शब्दों को,
पर आत्मा की गहराई में
वो मुस्कान अमर रहती है,
शांत और शाश्वत।

यदि कोई सोकर फिर न जागे,
वही दिन मृत्यु का दिन कहलाए,
पर हर सुबह जो हम उठते हैं,
वो जन्मदिन है — बिना दीपक, बिना गान।

उन्होंने कहा, “लिखना छोड़ो,
प्रसिद्ध मत करो, बस रहो।”
मैंने मौन में उन्हें छोड़ा,
क्योंकि सच्चाई मेरी कविता में है।

मैं न प्रशंसा पाने लिखता हूँ,
न तालियों के शोर के लिए,
मैं लिखता हूँ अपने मन को सहलाने,
कविता मेरी आत्मा की दवा है।

हर पंक्ति मेरी साँस है,
हर विचार एक दर्पण,
कविता मेरा शौक़ नहीं,
ये आत्मा का सम्बन्ध है।

जी आर कवियुर 
20 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 104

अकेले विचार – 104

सुनना एक अनमोल दान है,
दिल खोलकर मिलता सम्मान है।

मौन सजाता मन की शांति,
शब्द जगाते अक्सर भ्रांति।

शांत धरा पर सत्य खिले,
वाणी से रिश्ते अक्सर हिले।

आधी बातें मौन कह जाएँ,
स्नेह की लहरें मन बहलाएँ।

धैर्य से उपजता है बंधन,
ध्यान से मिलता है जीवन।

हर वाक्य सोच-समझ कर बोलो,
ज्ञान का दीपक हृदय में खोलो।

जी आर कवियुर 
20 08 2025
(कनाडा , टोरंटो)

मेपल की छाँव में

मेपल की छाँव में

मेपल की छाँव में
धीरे-धीरे चलते हुए,
अचानक एक मधुर अनुभूति
मन में उतर आई—
जैसे वटवृक्ष की जड़ों तले बैठा हूँ।

भाषाओं से परे,
भारत का प्रेम,
उसकी भव्य अखण्डता,
झुके सिरों से, बिना शब्दों के,
वे आपस में संवाद करते हैं।

मैं भी भूल गया चारों ओर,
‘मैं’ का अहं मिट गया,
हृदय काँप उठा—
यह मेरा देश नहीं,
यह कनाडा है।

किन्तु स्वयं को त्यागकर,
उस परम वैभव की यात्रा में,
मैं हाथ जोड़कर नमन करता हूँ
भारत माता को।

जी आर कवियुर 
19 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

“एकांत रात का प्यार भरा गीत”

“एकांत रात का प्यार भरा गीत”

एकांत की इन रातों में
क्षितिजों के उस पार,
चाँद की रेखा के नीचे,
तारों की राहों में मैंने तुम्हें खोजा।

यक़ीन था कि तुम आओगे,
दिल की धड़कनों में वह विश्वास,
सपनों का गीत बनकर उठता रहा,
हर पल को संभाले रखा।

नयन में खिले हुए चित्र
तेरी मुस्कान से जगमगाते हैं,
हवा की लहरों में छुपकर
तेरा कोमल स्पर्श मिल जाता है।

चाहे संध्या के मेघ ढल जाएं,
चाहे रात का मौन उतर आए,
मेरे मन की उजली दुनिया में
तेरा प्यार का गीत सदा गूंजेगा।

जी आर कवियुर 
19 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 103

अकेले विचार – 103

मुस्कान के पीछे छिपे हैं राज़,
मन के भीतर उठते हैं साज़।
चमकते होंठ कहें न कहानी,
दिन गुज़रते फिर भी अनजानी।

हल्की हंसी ढक दे अंधियारा,
दिल को चाहिए उजियारा।
थके कदम चलते रहते,
हौसले से सपने सँवरते।

वह वक्र बताता ऊँचाई,
आँसू सूखें, मिले रिहाई।
शक्ति और आशा का प्रतीक,
हर चेहरे पर चमके संगीत।

जी आर कवियुर 
19 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 102

अकेले विचार – 102

जब प्रभात की किरणें मुस्काएँ,
मन में आशा के दीप जगाएँ।
आईने में नज़र जो डाले,
विश्वास के रंग हृदय संभाले।

होंठों पर हंसी का प्यारा नूर,
सन्नाटा भर दे आनंद भरपूर।
पावन उपहार यही तो है,
सच्चे प्रेम की पहचान रहे।

सुबह कहे फिर "चलो नया सफ़र,"
नेकी करो हर जगह, हर डगर।
ये उजियारा सदा साथ दे,
जीवन को मधुर राह दिखा दे।

जी आर कवियुर 
19 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Monday, August 18, 2025

बचपन की प्रतिध्वनियाँ

बचपन की प्रतिध्वनियाँ 

बच्चे दौड़े उस सड़क पर, जहाँ सूरज नाचा,
नंगे पाँव, खुले दिल, हाथ में हाथ थामा।
सुबह की राहें हँसी से रंगी हुई,
सपने खिले धीरे-धीरे, बिना किसी लाभ के।

अब ऊँची इमारतें खेल के मैदान को छुपा रही हैं,
पैसे की गूँज हर ओर ऊँची आवाज़ में गूंज रही है।

पालतू जानवर गर्व से टहलते हैं,
और छोटे बच्चों का प्यार अब दुर्लभ है।

शामें अब समयसीमा की हैं, खेल की नहीं,
बच्चे आते हैं, फिर चुपचाप दूर चले जाते हैं।

स्क्रीन ने खेलों को बदल दिया, हँसी अब फीकी,
मानवता की गर्माहट अब नाजुक और हल्की।

फिर भी शांत कोनों में यादें चमकती हैं,
सादगी भरे सुख और खोए हुए सपनों की झलक।

दुनिया भले ही भूल जाए, पर दिल अभी भी मानते हैं:
बच्चों के लिए प्यार हर कहानी से महत्वपूर्ण है।

जी आर कवियुर 
18 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Sunday, August 17, 2025

अष्टमंगल्य

अष्टमंगल्य

कमल खिलता पवित्र आभा में,
हाथी चलता शांति के साथ।

शंख बजता पवित्र गीत,
सफलता और समृद्धि सबके साथ।

आइने में प्रतिबिंबित शुद्ध प्रकाश,
अनंत आनंद दिन-रात फैलाए।

स्वस्तिक हर द्वार पर अंकित,
संपत्ति बहती हर ओर निरंतर।

सोने का घड़ा और अनाज की बहार,
कोई दुख नहीं, केवल सुख का अधिकार।

आठ शुभ संकेत मार्ग दिखाए,
सौभाग्य हर दिन जीवन में समाए।

जी आर कवियुर 
18 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)


अन्नदान

अन्नदान

हाथ जो देते हैं, लाते हैं रोशनी,
दिल जो बाँटते हैं, हल्का होता है बोझ भी।

बर्तनों में चावल और स्नेह भरे,
भूखों के चेहरे पर मुस्कान खिले।

वितरित करते समय गर्माहट बहे,
जीवों ने करुणा में बढ़ाया कदम।

मेज़ें सजी दया से,
सौम्य रास्तों में आशा बढ़ी।

खाली थालों ने खुशी पाई,
स्नेह भरा हर समय और पल।

देखभाल हर जगह पहुँची,
भोजन साझा करना सबको जोड़े।

जी आर कवियुर 
18 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)






अतिजीवन

अतिजीवन

तूफान हिला दें आसमान,
लहरें उठें, पर्वत कर दें चुप्पान।

जड़ें पकड़ें धरा मजबूती से,
नुकसान में खिलती आशा धीरे-धीरे।

छाया गिरे पर रोशनी ठहरे,
कदम बढ़ते रास्ते खोजते।

आंसू बहें पर साहस बढ़े,
दर्द सिखाए दिल की शक्ति।

छिड़के राख में नया घर बने,
सपने जागें रात के भीतर भी।

जीवन टिके परीक्षाओं के पार,
साहस के पंख उठाएं आत्मा को बार-बार।

जी आर कवियुर 
18 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

सीमाएँ

सीमाएँ

खामोश ज़मीन पर लकीरें बनी,
पहाड़ों पर चौकियाँ खड़ी।

नदियाँ मुड़कर बहती जातीं,
हवाएँ गुजरतीं बिना रुके।

पत्थरों से दीवारें उठीं,
सपनों ने राहें खोजीं।

पंछी उड़ते बिना इजाज़त,
बादल मिलते सागर से।

नज़रें तड़पें अपनापन पाने,
आशा टिके कठिन समय में।

हाथ जुदा हों पर सुर मिलें,
प्यार मिटा दे सारी सीमाएँ।

जी आर कवियुर 
18 08 2025 

डाक पेटी – दो दुनिया

डाक पेटी – दो दुनिया

भारत में खड़ी है चुपचाप अकेली,
कभी थी चिट्ठियों से भरी गली-गली।
राहों में डाली जाती थी आस,
अब मोबाइल ने ले लिया है विश्वास।

ईमेल की चमक, संदेश की उड़ान,
स्याही की खुशबू, आंसुओं का गान।
भीड़ की आवाजें अब खो गईं,
खामोशी की चादर में ढक गईं।

कनाडा की झील के पास सुर्ख डिब्बा,
अब भी खड़ा है मुस्कान लिए सच्चा।
स्टाम्प लगी चिट्ठियां अब भी चलतीं,
कागज़ पर मोहब्बतें अब भी पलतीं।

दो दुनिया का ये किस्सा कहता,
एक भुला, एक अब भी रहता।

जी आर कवियुर 
17 08 2025
(कनाडा, टोरंटो )

तेरी उम्मीद में जिता हूं (ग़ज़ल)

तेरी उम्मीद में जिता हूं (ग़ज़ल)


तेरी उम्मीद में जीता हूँ, दिल हरदम रोता है
तेरे जाने के ग़म में देखा, ये आलम रोता है

चाँद ढलते ही निगाहें, तेरा चेहरा ढूँढें
तारों की महफ़िल में हर इक परछाईं रोता है

रात तन्हा है, हवाओं में उदासी गहरी
ग़म का साया मेरी रूह पे बे-दम रोता है

इश्क़ की राह में हर ज़ख़्म कहानी कह दे
दिल की वीरान गली में यादेँ हरदम रोता है

आँसुओं से ही बनी है मेरी दुनिया “जी आर”
तेरे बिन इश्क़ का हर मौसम, हर दम रोता है

जी आर कवियुर 
17 08 2025 

Friday, August 15, 2025

दीवाना हूँ – एक ग़ज़ल

दीवाना हूँ – एक ग़ज़ल

हर धड़कन में तेरी याद महसूस करता हूं,
तुझे देखकर ही हो गया तेरे दीवाना हूं।

चाँदनी रात में तेरी परछाई ढूँढता हूँ,
हर ख्वाब में मैं बस हो गया तेरे दीवाना हूं।

तेरे बिना सूना लगता है ये दिल मेरा,
तेरी मुस्कान में अब मैं ही हो गया तेरे दीवाना हूं।

हवा में तेरा नाम घुला, हर साँस में महसूस करता हूँ,
हर लम्हा तेरी याद से हो गया तेरे दीवाना हूं।

सितारों की रोशनी में तेरा चेहरा तलाशता हूँ,
हर पल तेरे ख्यालों में हो गया तेरे दीवाना हूं।

जी आर की दास्ताँ लिख दी हमने,
हर शब्द में अब मैं ही हो गया तेरे दीवाना हूं।

जी आर कवियुर 
16 08 2025
(कनाडा,टोरंटो)

Wednesday, August 13, 2025

अकेले विचार – 101

अकेले विचार – 101

तेरी आँखों में एक शांत सागर है,
भूली हुई लहरों की फुसफुसाहट समेटे।
कभी साहसी जहाज़ अब साये में सोए हैं,
लंगर अनजान रेत में दबे हैं।

जो नक़्शे कभी चमकते थे, अब फीके पड़ गए,
सितारे अब राह नहीं दिखाते।
उम्मीदें स्थिर जल पर पत्तों-सी बहती हैं,
कहानियाँ गहराइयों में बंद हैं।

हँसी की गूँज लहरों के नीचे सोती है,
कदमों के निशान बदलते किनारों पर मिट जाते हैं।
फिर भी उस गहराई में एक मौन वादा चमकता है,
कि खोए हुए सपने भी कभी सुबह पाएँगे।

जी आर कवियुर 
14 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, August 12, 2025

दो किनारों की नदी


दो किनारों की नदी

बहुत समय पहले गंगा ने अपनी बहन को पश्चिम भेजा,
चाँदी सी लहरों में आशीष लेकर,
मेपल की हवाओं और विशाल झीलों की धरती खोजते हुए—
वहां वह हम्बर बनी, दो लोकों की रक्षक।

चाँदनी ने शांत बन्दरगाह का आकाश ओढ़ा,
उसकी बाँहों के नीचे फुसफुसाहटें चलीं,
कमल ठंडी हरित छाँव में ठहरा,
किनारों पर मधुर गीत गूंज उठे।

लहरों पर लक्ष्मी देवी मुस्कुराईं,
धाराओं ने भूली गुफाओं को सँभाला,
विरासत बहते प्रवाह में घुली,
दूर कहीं सपने खिलने लगे।

मंदिर की घंटियाँ और समुद्री पक्षियों की उड़ान मिलीं,
चमेली की खुशबू उत्तरी प्रकाश में घुली,
कहानियों ने अस्त होते सूरज की भूमि जोड़ी,
अदृश्य हाथों में ज्ञान बहा।

पूरनिमा आते ही,
दोनों नदियाँ सागर पार एक ही राग गाने लगीं,
दूर किनारों के बीच सपनों को गले लगाया—
एक ही आकाश तले दिलों को मिला दिया।

जी आर कवियुर 
13 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, August 11, 2025

समय के पार आती कॉल”

समय के पार आती कॉल”

आधी रात को फ़ोन बजता है,
आँखें बंद, मन कहे — ये घर से होगा।

यहाँ चाँद ड्यूटी पर है,
वहाँ सूरज मुस्कुरा रहा है।

कवि ख़्वाबों में खोकर कॉल करते हैं,
व्यापारी रोज़ी-रोटी के लिए।

समय पहरेदार बन खड़ा है,
पर आवाज़ें उसे लाँघ जाती हैं।

कोई कविता सुनाता, कोई दाम बताता,
रात में भी दिल को गरमाहट मिलती है।

आधी रात हो या सुबह — क्या फ़र्क,
दिल और उम्मीद समय को मात देते हैं।

जी आर कवियुर 
12 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

विद्यारंभ

विद्यारंभ 

नई राह शुरू होती है दिल से भरी,
ज्ञान की रोशनी जगाती है उम्मीदें।
नन्हे हाथ थामते हैं सीखने की चाबी,
अज्ञात का द्वार खुलता है धीरे-धीरे।

धीमे स्वर में प्रार्थना की आवाज़,
ज्ञान के बीज बोते हैं हम सब।
चमकती आँखें उत्सुकता से भरी,
सच्चाई की राह दिखती है धीरे-धीरे।

पुरानी बातें, कहानियाँ सुनाकर,
सपने जागते हैं, भविष्य बनता है।
हर कदम पर मन बढ़ता जाए,
इस पवित्र संस्कार को हम न भूलें।

जी आर कवियुर 
12 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

चाहता हूं। (ग़ज़ल)

चाहता हूं। (ग़ज़ल)

तेरी इन्कार को जानते हुए भी चाहता हूं,
अभी जानो कि मैं तुझको कितना चाहता हूं।

तेरी हर मुस्कान में बसता मेरा जहाँ पाया,
तेरी हर बात में खुद को नया पाया चाहता हूं।

चाहत की आग में जो जलता रहा बेइंतिहा,
उसे सिर्फ़ तुझसे ही जुड़ा पाया चाहता हूं।

हर एक ख्वाब में तेरी तस्वीर को सजाया,
आँखों में तेरा ही सााया पाया चाहता हूं।

माना के दर्द छुपा लूँ निगाहों से सारा,
पर तेरे बिना खुद को खोया पाया चाहता हूं।

जीआर का ये अशरफ़ जहाँ में बज़्म में छाया,
तेरी मोहब्बत का ही दीवाना चाहता हूं।

जी आर कवियुर 
11 08 2025
(कनाडा,टोरंटो)

Sunday, August 10, 2025

मेपल और नारियल के बीच

मेपल और नारियल के बीच

कनाडा की बर्फ़ की नीरवता में मैं खड़ा,
फिर भी सुनता हूँ केरल की बरसात का धड़ा।
पतझड़ की हवा में उड़ते मेपल के पत्ते,
दिल चला जाता है नारियल के किनारों पर थमे।

इलायची की खुशबू, काली मिर्च की तीखी लहर,
सर्द रातों में देती है आत्मा को कहर।
यहाँ झील चाँद को ठंड में थाम लेती,
वहाँ बैकवॉटर में मछुआरे की धुन बहती।

माँ के मिट्टी के बर्तन में इमली की करी,
यादों में घोलती है पहली मोहब्बत की लहरि।
दो दुनियाओं के बीच दिल बुनता है एक जाल,
प्यार का पुल जो कभी नहीं होगा ख़याल।

जी आर कवियुर 
10 08 2025
कनाडा,टोरंटो 

विनाश

विनाश

लपटें उठीं, रात लाल हो जाती,
दीवारें गिरतीं, गलियाँ फैल जातीं।

धुआँ ढके नभ, तारे फीके पड़ते,
रोती हवाएँ भारी कथा गढ़ते।

सागर किनारों से आगे गरजते,
वन गिरते, साँसें सदा को रुकते।

बिजली की गड़गड़ में पर्वत टूटते,
राख घर-घर की चौखट छूते।

धूल से फिर नई जड़ें उग आतीं,
आँसू अँधेरा नभ साफ़ कर जाते।

दुख घटता, घाव सुकून में सोते,
समय सिखाता क्या खोने में होते।

जी आर कवियुर 
10 08 2025
कनाडा,टोरंटो 

दुर्घटना

दुर्घटना

बिना बुलाए काले बादल घिर आते,
छायाएँ रेंगतीं, मन टूट जाते।

सूनी गलियों में आँधी गरजती,
खामोशी में तूफ़ान डर से मिलती।

पेड़ झुकते प्रकृति की शक्ति के आगे,
बेचैन रात में घर काँपते जागे।

नदियाँ तोड़ें अपने धैर्य के बंधन,
बिना शोर फैलाएँ संकट का प्रसंगन।

फिर भी मलबे में उम्मीद उगती,
हाथ मिलाकर गर्माहट जगती।

हर परीक्षा रास्ता बनाती,
एक उजले, शांत दिन को लाती।

जी आर कवियुर 
10 08 2025
कनाडा ,टोरंटो 

Saturday, August 9, 2025

विस्मय

विस्मय

आसमान की चमकीली छटा में आँखें खिल उठीं,
अनंत दृश्य में पर्वत ऊँचे उठ खड़े हुए।

नदियाँ चाँदी के धागे-सी गाती रहीं,
जहाँ सपने ले जाते, जंगल फुसफुसाते रहे।

मखमली चादर पर सितारे चमकते हैं,
सागर घर की आवाज़ में गरजते हैं।

तूफ़ान उड़ान भरते ही इंद्रधनुष नाच उठे,
स्वर्णिम किरणों से प्रभात जगमगाया।

बच्चे गाते-हँसते मुक्त हो गए,
कलियाँ अपनी कोमल खुशी में खिल गईं।

दिलों ने दुनिया को फिर से पाया,
हर साँस में एक रहस्य सच्चा ठहर गया।

जी आर कवियुर 
08 08 2025
कनाडा, टोरंटो 



बीज की गुणवत्ता

बीज की गुणवत्ता 

अच्छे बीज सुबह में जागें,
धूप में ऊँचाई भागें।
बारिश चूमे धरती प्यारी,
जड़ें पवन संग बाँहें डाले।

शुद्ध मिट्टी रखे सँभाल,
धूप करे जीवन का जाल।
ठंडी हवा खेत सहलाए,
फसल सुनहरी मुस्काए।

सावधानी से बीज चुनो,
प्रकृति का आशीष सुनो।
मेहनत से खेत सजाएँ,
हरे सपने नभ तक जाएँ।

जी आर कवियुर 
08 08 2025 ,10 :45 am 

Friday, August 8, 2025

विदाई से पहले

विदाई से पहले

रुख़सत से पहले, दिल खामोशी से बोले,
क्षण ठहर जाएं, यादें धीरे से डोले।
अनकहे शब्द हवा में घुले,
भावनाएं खिलें, अनमोल मिले।

आँखें मिलीं, एक चुप आंसू,
छुपे जज़्बात, फिर भी हैं पूरी छू।

समय धीमा हो, साँस थमी सी,
धुंधले उजाले में नाचें परछाइयां भी।

वादे कोमल, सच्चे और प्यारे,
रास्ते भले अलग हों, उम्मीदें हमारे।
एक आख़िरी छूआव, एक अंतिम सांस,
विदाई से पहले, प्यार रहे पास।

जी आर कवियुर 
08 08 2025 ,7:30 am 

तुम हो जीवन की खुशी

तुम हो जीवन की खुशी

सुबह की पहली किरण मन में खिलती और मुरझाती है,
जब जागा तो शाम का फूल खिल उठा,
तुम्हारे शब्दों में खुशी है,
मैं तुम्हारी मुस्कान में सवेरा का इंतजार करता रहा।

बारिश की बूँदों की तरह खिलते हुए,
तुम्हारी मुस्कान ने मेरी आत्मा को भिगो दिया,
नीले आसमान के नीचे, जब तारों की माला चमकती है,
तुम्हारा आना मेरी आँखों में सपने भर देता है।

मेरे दिल के बाग़ में बसंत आया है,
प्रेम के मेहमान के रूप में,
अक्षरों ने फूलों की तरह खिलना शुरू किया,
कुक्कू का गीत नाचा और गाया,
क्या तुम मेरे साथ गाने चलोगी?

जब तुम मेरे करीब आती हो,
सुबह की धूप बसंत के फूल बन जाती है,
तुम्हारी आँखों में चमक है,
पंख की नोक पर कविता की तरह,
मेरे दिल में मीठा दर्द खिल उठा,
तुम मेरे जीवन के गीत में खुशी लाती हो।

जी आर कवियुर 
08 08 2025 ,5:30 am 

Wednesday, August 6, 2025

अकेले विचार – 99

अकेले विचार – 99

दूसरों की राय में जो उलझे,
अपने मन की बातें भूलते।
मुस्कान उधारी लगती मीठी,
पर अंदर से वो सब छीनती।

सोच की उड़ान रुक जाती है,
ख्वाबों की रोशनी बुझ जाती है।
अपने विचार खो देते हैं,
अंदर से हम थक जाते हैं।

साहस से खुद की राह चुनो,
स्वाभिमान को मत कभी गुम करो।
तुम्हारे पास है खुद की आवाज़,
गाओ वही, चाहे जो हो अंदाज़।

 जी आर कवियुर 
07 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

हीं मालूम। ( ग़ज़ल)

हीं मालूम। ( ग़ज़ल)

तेरे मेरे रिश्ते की हक़ीक़त नहीं मालूम,
सदियों पुराना है ये किस्मत — नहीं मालूम।

हर रोज़ मिलते हैं वो ख़्वाबों में मुसलसल,
क्यों दिल से जाते नहीं राहत — नहीं मालूम।

कब तक रहेगी दिल में ये उलझी सी तन्हाई,
किस मोड़ पर छूट गई चाहत — नहीं मालूम।

हमने तो हर दर्द को अपना ही समझा है,
किसने दी दिल को ये दौलत — नहीं मालूम।

आँखों में तेरे रंग जो ठहरे हैं आज तक,
किस पल हुई थी ये शरारत — नहीं मालूम।

'जी आर' ने हर शेर में सच्चाई रखी लेकिन,
कब बन गई ये उनकी आदत — नहीं मालूम।

जी आर कवियुर 
06 08 2025

अकेले विचार – 98

अकेले विचार – 98

पल किसी का इंतज़ार नहीं करते,
घड़ी हमेशा चलती रहती है।
इच्छाएँ बादलों-सी तैरती हैं,
आशा विश्वास से बहती है।

इस सफ़र में वापसी नहीं होती,
हर धड़कन नई दास्तां लिखती है।
क्षणिक मुस्कानें खिल जाती हैं,
खुशियाँ उम्र की मोहताज नहीं होतीं।

सितारों के पीछे चलो बेपरवाह,
बरसात में थिरकते रहो।
पछतावे बिना आज को जी लो,
हर सवेरा जीवन का वरदान है।

जी आर कवियुर 
06 08 2025

नदियों की यादों में — हम्बर के किनारे

नदियों की यादों में — हम्बर के किनारे

हम्बर किनारे चाँदनी छाई,
ओंटारियो की लहरों ने धुन सुनाई,
टोरंटो का टावर आँखों में बसा,
कवि के मन की घाटी में
हवा संग सपनों ने पंख लगा लिया।

रास्ते, लोग, चलती गाड़ियाँ,
रेल की पटरी, उड़ती कारें,
इंसान ने जो आकाश छू लिया,
उन इमारतों के बीच
प्रकृति भी मुस्कुरा उठी हर दिशा।

विविध भाषाएँ, रंग-बिरंगे लोग,
न कोई भेदभाव, न कोई वियोग,
एकता की ख़ुशबू फैली है यहाँ,
सब देख खड़ा हूँ चुपचाप वहाँ,
जहाँ आसमान को छूती है आँखों की नमी।

गंगा, यमुना साथ जो आई,
कावेरी, भारतपुज़ा की परछाई,
पेरियार, पम्पा दिल में समाए,
मणिमला की ममता भी संग आए,
भारत के इतिहास की सोच में खोए,
अब मैं भी हम्बर की लय में गाऊँ, भाई।

जी आर कवियुर 
(कनाडा , टोरंटो)
06 08 2025

Tuesday, August 5, 2025

मोगरे की ख़ुशबू, मेपल की सर्दी और नींद-रहित दिनक्या ये अजीब है

मोगरे की ख़ुशबू, मेपल की सर्दी और नींद-रहित दिन


क्या ये अजीब है — नींदहीनों रातों पर लिखना?
कोहरे की बूँदों संग मैं मेपल की हवा में उतरा।
आँखें रो पड़ीं मोगरे की मुस्कान को तरसकर,
यहाँ चुप्पी बर्फ़ की तरह धीरे-धीरे गिरती है।

मंदिर की घंटियाँ कभी पवित्र समय को गाती थीं,
अब सड़कों की बत्तियाँ ठंडी और मौन हैं।
सोचें फैलती हैं आम के कोमल पत्तों की छाँव में,
तन किसी अनजाने चाँद के नीचे नींद को तरसता है।

कौवों की पुकार अब सुनाई नहीं देती,
यहाँ का चाँद अपरिचित सुरों में कुछ कहता है।
सुबह की पहली किरण प्रार्थना जैसी शांति लाती है,
जहाँ मन टिकता है, वहाँ शरीर को भी सुकून मिलता है।

जी आर कवियुर 
(कनाडा , टोरंटो)
05 08 2025

“छाया तक रुठी” (ग़ज़ल)

“छाया तक रुठी” (ग़ज़ल)


मेरी छाया भी मुझसे रुठ गई है
तेरे बारे में अब क्या कहना है

हर एक मोड़ पे तन्हा छोड़ दिया
इस सफ़र का फिर क्या तजुर्बा कहना है

तेरी यादें भी अब बातें कम करती हैं
शायद दिल को अब समझना कहना है

लब ख़ामोश हैं, पर आँखें बयां कर जाएँ
इस दर्द का अब और क्या कहना है

जो भी जिया, तुझसे ही जुड़ा था "जी आर"
अब तेरे बिना तो बस जीना कहना है

जी आर कवियुर 
05 08 2025

Monday, August 4, 2025

नग़मे तेरे"

नग़मे तेरे"

मर के भी तुम याद आए — नग़मे तेरे,
हम जी के भी भूल न पाए — नग़मे तेरे।

बिछड़ों तो हर साज़ ने रोया — नग़मे तेरे,
दिल ने भी अश्कों में पिरोया — नग़मे तेरे।

हर मोड़ पर तेरी सदा सुनाई दी,
ख़ामोशियों में भी थे खोया — नग़मे तेरे।

रातों की तन्हाई में जब भी दिल टूटा,
आँखों ने चुपचाप ही बोया — नग़मे तेरे।

अब भी हवाओं से तेरा पैग़ाम आता है,
उनकी भी ज़ुबां पर है गोया — नग़मे तेरे।

'जी आर' ने बस तुझको ही देखा हर मंज़र में,
हर रंग में उसको ही सोया — नग़मे तेरे।

जी आर कवियुर 
04 08 2025



जहां नदी झील से मिलती है — टोरंटो

जहां नदी झील से मिलती है — टोरंटो


जहां हंबर की धारा बहती,
मैं बैठा चुपचाप, यादों में लिखती।
मुलायम मोड़ों से उसने कही,
झील से अपनी दास्तां सही।

चट्टान पर बहती ठंडी हवा,
शहर की रौशनी थी जैसे दवा।
हृदय की पुस्तक में भरकर प्यार,
लिखे शब्द बन गए शायर।

गंगा की कृपा, पंपा का राग,
हंबर भी बहती है वही सुगंधी भाग।
जहां नदी झील में समा गई,
मेरी सोच संगीत में बहा लाई।

जी. आर. कवियूर
04 08 2025

ग़ज़ल-सी तन्हाई

ग़ज़ल-सी तन्हाई


है मेरा इश्क़ अनोखा-सा,
दिल-दरिया में लहर-सा।

सागर शोर मचाए है रातों में,
दिल तन्हा गुनगुनाए ग़ज़ल-सा।

तेरी यादों की बारिश में भीगा हूँ,
हर आहट लगे मुझे सवाल-सा।

तेरे जाने की ख़ामोशी कहती है,
हर पल की धड़कन बवाल-सा।

चाँदनी रात में भी तू ही दिखे,
हर मंज़र लगे मुझे कमाल-सा।

‘जी आर’ ने जो लिखा है तन्हाई में,
वो भी तेरा ही है ख़याल-सा।

 जी आर कवियुर 
04 08 2025

अकेले विचार – 97



अकेले विचार – 97

दिल दूर कहीं भटक जाए,
फिर भी पास होने का एहसास दिलाए।
जो बातें कही नहीं जातीं,
वही दूरियों की वजह बन जातीं।

जब आंखें मिलती हैं मगर,
सच दिल तक पहुंच नहीं पाता।
एक छोटा सा शक अगर जाग जाए,
तो प्यार भी दर्द बन जाता।

मीलों की दूरी कोई मसला नहीं,
टूटे भरोसे से रिश्ता टूटता है वहीं।
प्यार से बात करनी चाहिए,
ध्यान से सुनना भी ज़रूरी है वहीं।

जी आर कवियुर 
04 08 2025

Saturday, August 2, 2025

पीड़ा में प्रेम":

पीड़ा में प्रेम":

भोर की सांकल में झींगुरों की तान,
ओस की बूँदें पत्तों पर थम गईं।
फूल की मुस्कान के पीछे
चुपचाप एक वेदना बिखर गई।

बेमेल सी हवा ढूंढती रही उत्तर,
रंग बदलती यादों में भटकती रही।
कली की थरथराहट में
एक धुंधली सी छाया बन कर उभरी शून्यता।

आकाश में डूबी पीड़ा की नमी
तन्हा तटों की ओर बह चली।
बरसती बूँदों में मन का छोर,
हर कतरे में सहारा ढूँढता रहा।

समय के पार ठहरी उस भावना में
धूप के बदलते रंगों में रूप मिला।
काल के स्पर्श ने भले दूर किया हो,
गीतों में एक छाया बनकर तुम
— आँखों में बस गई एक याद बनकर।

जी आर कवियुर 
02 08.2025

ग़ज़ल

ग़ज़ल

रात पलकों पे ख़्वाबों की चादर बिछाई,
तेरी यादों से गुलदस्तां फिर से सजाई।

तेरे बिन हर सवेरा अधूरा लगे,
चाँदनी भी लगे जैसे रोयी-सोई।

तन्हा लम्हों ने सीखा दिया ये सबक,
हर खुशी अधूरी है तेरे बिना कोई।

तेरी आवाज़ की खुशबू अभी तक है ज़िंदा,
हर हवा कुछ कहे, हर खामोशी भी खोई।

बिछड़ के भी तू पास है धड़कनों में,
तेरे नाम की धुन दिल ने चुपचाप संजोई।

तेरे ख़्वाबों से रिश्ता कभी टूट न पाया,
'जी आर' ने फिर वही तन्हाई गले से लगाई।

जी आर कवियुर 
02 08 2025

मुलाक़ात की उम्मीद"

मुलाक़ात की उम्मीद"

थका हूँ सफर से, नींद भी नाराज़ है,
हर घड़ी जैसे सदी बनकर आज है।
पलकों पे बोझ है, मन में धुंध छाई,
पर दिल की लौ अब भी बुझी नहीं भाई।

सर्द सीटों पे पसरा है तन का दर्द,
पर भीतर कहीं चुपके मुस्कुराता है अर्थ।
सोचता हूँ उस हँसी को जो मुझे देखेगी,
उस गले को जो बिना शब्दों कुछ कहेगी।

जब अपनों की आंखों में जलेगा उजाला,
ये थकान भी लगेगी इक मीठा प्याला।
हर मील, हर लम्हा होगा बस एक बहाना,
ताकि पहुंचूं उस दिल तक... जो है मेरा ठिकाना।

जी आर कवियुर 
02 08 2025


उड़ान

उड़ान

सफर है लंबा, पर दिल नहीं थका,
हर बादल के पार, कोई सपना बसा।
नीचे ज़मीन, ऊपर आसमां,
बीच में मैं, और कुछ अनकहा सा ग़ुमान।

वक़्त की चुप्पी, खिड़की से झाँके,
यादों की परछाइयाँ मुझसे बातें करें।
कतरा-कतरा आसमान लिख रहा अफ़साना,
दिल ने भी रखी है इक दुआ, इक ठिकाना।

मीलों की दूरी, मगर एहसास पास है,
हर दिल की धड़कन में कोई खास बात है।
नई सुबह की ओर उड़ते हैं हम,
हर मंज़िल में छुपा एक नया संगम।

 जी आर कवियुर 
02 08 2025 

Friday, August 1, 2025

दिल में समाए ख़्वाब" ( ग़ज़ल)

दिल में समाए ख़्वाब" ( ग़ज़ल)

जो कह न सके, वो दिल में समा गए,
तन्हाई में बिखरे ख़्वाब फिर सताए।

ख़ामोश लबों ने शिकायत न की,
आँखों की नमी ने फ़साना सुनाए।

वो पल जो गुज़रे थे तेरे करीब,
अब याद बनके हरदम रुलाए।

साए भी अब साथ छोड़ने लगे,
जब दर्द ने हर रिश्ता आज़माए।

उम्मीद की लौ भी बुझने लगी,
जब हर दुआ ने लौटकर ज़ख़्म दिखाए।

'जी आर' की ग़ज़ल में सन्नाटा बसा है,
हर मिसरा दिल का दर्द कह जाए।

जी आर कवियुर 
01 08 2025