Sunday, August 31, 2025
एक कवि का विचार
जिज्ञासा
राधारानी का जन्मदिन
कल्पवृक्ष
री याद के सिलसिले" (ग़ज़ल )
Friday, August 29, 2025
"तेरे प्यार के अफ़साने" ( ग़ज़ल )
सपनों के रंग
Thursday, August 28, 2025
चाय, अख़बार और ज़िंदगी
तेरी रहमत का सहारा" ( ग़ज़ल)
Tuesday, August 26, 2025
तेरी यादें( ग़ज़ल)
Monday, August 25, 2025
अकेले विचार – 107
अकेले विचार – 108
पिंजरा
प्रतीक्षा
अतिमोह
Sunday, August 24, 2025
तेरे गीत की मधुरिमा
तेरे गीत की नाजुक लय उजाले में चमकती है,
फूलों की खुशबू बिखरती है, हल्की हवा में बहती।
सूरज की रौशनी में रंग बदलते हैं और झिलमिलाते हैं,
नदियाँ हँसते हुए समुद्र की ओर बहती हैं।
बारिश धीरे-धीरे गिरती है, मिट्टी की खुशबू विचारों में फैलती है,
सवेरे की किरण अंधकार को दूर कर देती है।
हरी पत्तियों की आवाज़ दिल को छूती है,
पंखुड़ियों के बीच छोटे पल खुशी से फैलते हैं।
मन में यादों के पंख खिलते हैं,
रात की मौनता छिपे सपनों को छूती है।
प्रकृति के कोमल, घने, जादुई जाले में,
हर सांस आशीर्वाद के गीत के रूप में उठती है।
जी आर कवियुर
24 08 20
25
(कनाडा , टोरंटो)
मीनार की लिफ्ट"
मीनार की लिफ्ट"
हर मंज़िल पर लोहे का दरवाज़ा
खुलता विशाल,
फौरन बंद हो जाता,
स्वागत करते क़दम भीतर आते।
अलग–अलग ज़बानों की आवाज़ें,
भिन्न–भिन्न चेहरे,
एक ही चौकोर फ़र्श पर
सभी साथ सिमट जाते।
बच्चे की हँसी,
दादाजी की थकी साँस,
मोहब्बत की मुस्कानें,
ग़ुस्से की चिंगारियाँ।
बड़े–छोटे बक्से लुढ़कते,
शॉपिंग बैग झूलते,
कठिन क्षण पीछा करते।
बातें इशारे करतीं,
ख़ामोश राज़ बाँटे जाते,
इच्छा की एक झलक,
ममता का एक हल्का स्पर्श।
ख़ुशियाँ ऊपर चढ़तीं,
ग़म नीचे उतरते,
सपने और बोझ
ख़ामोशी में संग चलते।
सुबह से गहरी रात तक,
लिफ्ट अनकही कहानियाँ सँभालती,
ज़िंदगियाँ उलझकर
गलियारों और कमरों में धड़कनों सी बहतीं।
हर बीते पल में,
हर मुस्कान, हर आँसू,
लोहे की ख़ामोश दीवारों पर
उभर जाते निशान—
जैसे वक़्त बहा ले गया ज़िंदगी के साये।
और एक दिन
जब दरवाज़ा आख़िरी बार बंद होगा,
लिफ्ट ख़ामोशी से सँजोए रखेगी
यादों के वो अमिट निशान।
जी आर कवियुर
24 08 2025
Saturday, August 23, 2025
अकेले विचार – 106
Friday, August 22, 2025
सजावट
बहुत दुख की बात है
अष्टमुड़ी की यादें ( ग़ज़ल)
अष्टमुड़ी का झील
Thursday, August 21, 2025
अनंत अज्ञात
अनंत अज्ञात
मौन तारकियाँ आकाश को छू रही हैं,
छायाएँ बह रही हैं उजाले को छोड़कर।
तारे जागते हैं अनंत नीर में,
अँधेरे में सपनों में गूँजते हैं शब्द।
पर्वत खड़े हैं प्राचीन ज्वाला को संभालते हुए,
नदियाँ बहती हैं बिना नाम के।
समय घुलकर छिप गया हवाओं में,
सवाल खड़े हैं बिना जवाब के।
पथ खुलते हैं दृष्टि से परे,
मन मिलकर अनुभव करता है अनंत प्रकाश।
रहस्य बुलाता है अज्ञात दुनिया से,
हृदय जागता है विशाल साहस में।
जी आर कवियुर
22 08 202
5
( कनाडा, टोरंटो)
अनंत अज्ञात (ग़ज़ल)
अनंत अज्ञात (ग़ज़ल)
मौन तारक़ियाँ बुला रही हैं अनंत अज्ञात,
छायाएँ छिप जाती हैं खोजते हुए अनंत अज्ञात।
सितारों की गूँज में खो जाती राहें,
सोचों में चमकता है अनंत अज्ञात।
पहाड़ खड़े हैं प्राचीन रहस्य को सँभालते हुए,
नदियाँ बहती हैं शांतिपूर्वक अनंत अज्ञात।
सवाल पूछे समय में घुलकर मिट जाते हैं,
उत्तर प्रकट होते हैं सिर्फ़ अनंत अज्ञात।
जब दिल खुलते हैं तो रोशनी फैलती है,
आत्मा महसूस करती है वही अनंत अज्ञात।
जी आर कहता है, हृदय में बसी कविताएँ,
सृष्टि की मौनता में गूँजता अनंत अज्ञात।
जी आर कवियुर
22 08 2025
(कनाडा , टोरंटो)