Friday, August 22, 2025

अष्टमुड़ी की यादें ( ग़ज़ल)

अष्टमुड़ी की यादें ( ग़ज़ल)


अष्टमुड़ी की लहरें गुनगुनातीं, दिल में बसी हर यादों के संग,
कवि का सपना बनकर मौन ठहरतीं, हर पल गूँजतीं हर यादों के संग।

एक अकेली नाव स्मृति-सी बहती, हर लहर में बसी हर यादों के संग,
उसकी पतवार झील पर कविता लिखती, जैसे गीतों में मिलती हर यादों के संग।

मैं खड़ा हूँ टोरंटो की नीली झील किनारे,
जहाँ कवियों ने भी लहरों में संगीत पाया हर यादों के संग।

पर वहाँ, केरल की उस संध्या में,
बगुले गाते हैं बिछड़े प्यार की तान हर यादों के संग।

हर ज्वार लौट आता है कहानियों के साथ,
जैसे चाँद पढ़े कोई पुरानी किताब हर यादों के संग।

छूटे हुए हर पल को फिर से जी लूँ मैं,
अष्टमुड़ी की उस छांव में, सुनहरी यादों के संग।

दिल कहता है लौट चलूँ वहाँ, जहाँ प्रेम की बूँदें अभी भी हैं हर यादों के संग,
जी आर गुनगुनाता है अपने मन में, बसी अष्टमुड़ी हर यादों के संग।

जी आर कवियुर 
22 08 2025 

(अष्टमुड़ी एक झील है केरल में )

No comments:

Post a Comment