कनाडा की बर्फ़ की नीरवता में मैं खड़ा,
फिर भी सुनता हूँ केरल की बरसात का धड़ा।
पतझड़ की हवा में उड़ते मेपल के पत्ते,
दिल चला जाता है नारियल के किनारों पर थमे।
इलायची की खुशबू, काली मिर्च की तीखी लहर,
सर्द रातों में देती है आत्मा को कहर।
यहाँ झील चाँद को ठंड में थाम लेती,
वहाँ बैकवॉटर में मछुआरे की धुन बहती।
माँ के मिट्टी के बर्तन में इमली की करी,
यादों में घोलती है पहली मोहब्बत की लहरि।
दो दुनियाओं के बीच दिल बुनता है एक जाल,
प्यार का पुल जो कभी नहीं होगा ख़याल।
जी आर कवियुर
10 08 2025
कनाडा,टोरंटो
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