आधी रात को फ़ोन बजता है,
आँखें बंद, मन कहे — ये घर से होगा।
यहाँ चाँद ड्यूटी पर है,
वहाँ सूरज मुस्कुरा रहा है।
कवि ख़्वाबों में खोकर कॉल करते हैं,
व्यापारी रोज़ी-रोटी के लिए।
समय पहरेदार बन खड़ा है,
पर आवाज़ें उसे लाँघ जाती हैं।
कोई कविता सुनाता, कोई दाम बताता,
रात में भी दिल को गरमाहट मिलती है।
आधी रात हो या सुबह — क्या फ़र्क,
दिल और उम्मीद समय को मात देते हैं।
जी आर कवियुर
12 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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