निर्मल हवा में आशा तैरती,
क्षण रुकते दीवारों पर छाया बन।
नज़रें भटकें अनंत गगन में,
सपने फुसफुसाएँ शांत रजनी में।
कदम ठहरें सुनसान राहों पर,
समय बहे अदृश्य नदी जैसा।
दिल कांपे कोमल चाहत में,
बादल घिरें दूर की खामोशी में।
हाथ तरसें भूले स्पर्श हेतु,
तारे झिलमिलाएँ गुप्त गीत लिए।
धैर्य खिले लम्बी घड़ियों में,
प्रतीक्षा बसती कोमल आत्माओं में।
जी आर कवियुर
25 08 2025
( कनाडा , टोरंटो)
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