सुप्रभात के आकाश में पिंजरा छू रही किरण,
अंदर पंख फड़फड़ाए और गीत गूंजा।
सुनहरी किरण छूई लोहे को,
मन में स्वतंत्रता का सपना उजागर हुआ।
पिंजरे में पक्षी पंख फैलाकर कूदा,
विचार दूर-दूर तक उड़ गए।
बच्चे की आंखें खुशी से चमकीं,
मधुरता सुनकर दिल कांपा।
हमेशा की चाह खुली उड़ान के लिए,
भोर की रौशनी में जंगल की ओर।
गीत खत्म होने पर, मौन छा गया,
सिर्फ यादें कानों में घुल गईं।
जी आर कवियुर
25 08 2025
( कनाडा , टोरंटो)
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