मेपल की छाँव में
धीरे-धीरे चलते हुए,
अचानक एक मधुर अनुभूति
मन में उतर आई—
जैसे वटवृक्ष की जड़ों तले बैठा हूँ।
भाषाओं से परे,
भारत का प्रेम,
उसकी भव्य अखण्डता,
झुके सिरों से, बिना शब्दों के,
वे आपस में संवाद करते हैं।
मैं भी भूल गया चारों ओर,
‘मैं’ का अहं मिट गया,
हृदय काँप उठा—
यह मेरा देश नहीं,
यह कनाडा है।
किन्तु स्वयं को त्यागकर,
उस परम वैभव की यात्रा में,
मैं हाथ जोड़कर नमन करता हूँ
भारत माता को।
जी आर कवियुर
19 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)
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