आसमान की चमकीली छटा में आँखें खिल उठीं,
अनंत दृश्य में पर्वत ऊँचे उठ खड़े हुए।
नदियाँ चाँदी के धागे-सी गाती रहीं,
जहाँ सपने ले जाते, जंगल फुसफुसाते रहे।
मखमली चादर पर सितारे चमकते हैं,
सागर घर की आवाज़ में गरजते हैं।
तूफ़ान उड़ान भरते ही इंद्रधनुष नाच उठे,
स्वर्णिम किरणों से प्रभात जगमगाया।
बच्चे गाते-हँसते मुक्त हो गए,
कलियाँ अपनी कोमल खुशी में खिल गईं।
दिलों ने दुनिया को फिर से पाया,
हर साँस में एक रहस्य सच्चा ठहर गया।
जी आर कवियुर
08 08 2025
कनाडा, टोरंटो
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