Wednesday, August 6, 2025

हीं मालूम। ( ग़ज़ल)

हीं मालूम। ( ग़ज़ल)

तेरे मेरे रिश्ते की हक़ीक़त नहीं मालूम,
सदियों पुराना है ये किस्मत — नहीं मालूम।

हर रोज़ मिलते हैं वो ख़्वाबों में मुसलसल,
क्यों दिल से जाते नहीं राहत — नहीं मालूम।

कब तक रहेगी दिल में ये उलझी सी तन्हाई,
किस मोड़ पर छूट गई चाहत — नहीं मालूम।

हमने तो हर दर्द को अपना ही समझा है,
किसने दी दिल को ये दौलत — नहीं मालूम।

आँखों में तेरे रंग जो ठहरे हैं आज तक,
किस पल हुई थी ये शरारत — नहीं मालूम।

'जी आर' ने हर शेर में सच्चाई रखी लेकिन,
कब बन गई ये उनकी आदत — नहीं मालूम।

जी आर कवियुर 
06 08 2025

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