तेरे गीत की नाजुक लय उजाले में चमकती है,
फूलों की खुशबू बिखरती है, हल्की हवा में बहती।
सूरज की रौशनी में रंग बदलते हैं और झिलमिलाते हैं,
नदियाँ हँसते हुए समुद्र की ओर बहती हैं।
बारिश धीरे-धीरे गिरती है, मिट्टी की खुशबू विचारों में फैलती है,
सवेरे की किरण अंधकार को दूर कर देती है।
हरी पत्तियों की आवाज़ दिल को छूती है,
पंखुड़ियों के बीच छोटे पल खुशी से फैलते हैं।
मन में यादों के पंख खिलते हैं,
रात की मौनता छिपे सपनों को छूती है।
प्रकृति के कोमल, घने, जादुई जाले में,
हर सांस आशीर्वाद के गीत के रूप में उठती है।
जी आर कवियुर
24 08 20
25
(कनाडा , टोरंटो)
No comments:
Post a Comment