केरल की भूमि से आया कवि,
टोरंटो का शहर लाए नवाबी।
अजनबी भी मिलते मुस्कान लिए,
“धन्यवाद” और “माफ़ी” हर जगह सजी।
सड़कें चलती क्रम में शांत,
सिग्नल चमकते मार्गदर्शन साथ।
ट्राम चलें निःशब्द, ट्रेन दौड़े तेज़,
दुकानों में गूंजे मधुर स्वर का लेज़।
बगीचे में शांति, खुला आकाश,
झील में तारे जैसे चमकते प्रकाश।
हर पल देखता मानवीय ममता,
दयालुता बिखरे चारों ओर गगन।
जीवन व्यय भारी प्रतिदिन,
जनमभूमि से तुलना में बहुत दूर कहीं।
जी आर कवियुर
30 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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