Saturday, August 2, 2025

ग़ज़ल

ग़ज़ल

रात पलकों पे ख़्वाबों की चादर बिछाई,
तेरी यादों से गुलदस्तां फिर से सजाई।

तेरे बिन हर सवेरा अधूरा लगे,
चाँदनी भी लगे जैसे रोयी-सोई।

तन्हा लम्हों ने सीखा दिया ये सबक,
हर खुशी अधूरी है तेरे बिना कोई।

तेरी आवाज़ की खुशबू अभी तक है ज़िंदा,
हर हवा कुछ कहे, हर खामोशी भी खोई।

बिछड़ के भी तू पास है धड़कनों में,
तेरे नाम की धुन दिल ने चुपचाप संजोई।

तेरे ख़्वाबों से रिश्ता कभी टूट न पाया,
'जी आर' ने फिर वही तन्हाई गले से लगाई।

जी आर कवियुर 
02 08 2025

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