Thursday, August 21, 2025

अनंत अज्ञात

 अनंत अज्ञात


मौन तारकियाँ आकाश को छू रही हैं,

छायाएँ बह रही हैं उजाले को छोड़कर।

तारे जागते हैं अनंत नीर में,

अँधेरे में सपनों में गूँजते हैं शब्द।


पर्वत खड़े हैं प्राचीन ज्वाला को संभालते हुए,

नदियाँ बहती हैं बिना नाम के।

समय घुलकर छिप गया हवाओं में,

सवाल खड़े हैं बिना जवाब के।


पथ खुलते हैं दृष्टि से परे,

मन मिलकर अनुभव करता है अनंत प्रकाश।

रहस्य बुलाता है अज्ञात दुनिया से,

हृदय जागता है विशाल साहस में।


जी आर कवियुर 

22 08 202

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( कनाडा, टोरंटो)




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