Tuesday, August 12, 2025

दो किनारों की नदी


दो किनारों की नदी

बहुत समय पहले गंगा ने अपनी बहन को पश्चिम भेजा,
चाँदी सी लहरों में आशीष लेकर,
मेपल की हवाओं और विशाल झीलों की धरती खोजते हुए—
वहां वह हम्बर बनी, दो लोकों की रक्षक।

चाँदनी ने शांत बन्दरगाह का आकाश ओढ़ा,
उसकी बाँहों के नीचे फुसफुसाहटें चलीं,
कमल ठंडी हरित छाँव में ठहरा,
किनारों पर मधुर गीत गूंज उठे।

लहरों पर लक्ष्मी देवी मुस्कुराईं,
धाराओं ने भूली गुफाओं को सँभाला,
विरासत बहते प्रवाह में घुली,
दूर कहीं सपने खिलने लगे।

मंदिर की घंटियाँ और समुद्री पक्षियों की उड़ान मिलीं,
चमेली की खुशबू उत्तरी प्रकाश में घुली,
कहानियों ने अस्त होते सूरज की भूमि जोड़ी,
अदृश्य हाथों में ज्ञान बहा।

पूरनिमा आते ही,
दोनों नदियाँ सागर पार एक ही राग गाने लगीं,
दूर किनारों के बीच सपनों को गले लगाया—
एक ही आकाश तले दिलों को मिला दिया।

जी आर कवियुर 
13 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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