“नाम में क्या रखा है” —
वक़्त मिटा दे शब्दों को,
पर आत्मा की गहराई में
वो मुस्कान अमर रहती है,
शांत और शाश्वत।
यदि कोई सोकर फिर न जागे,
वही दिन मृत्यु का दिन कहलाए,
पर हर सुबह जो हम उठते हैं,
वो जन्मदिन है — बिना दीपक, बिना गान।
उन्होंने कहा, “लिखना छोड़ो,
प्रसिद्ध मत करो, बस रहो।”
मैंने मौन में उन्हें छोड़ा,
क्योंकि सच्चाई मेरी कविता में है।
मैं न प्रशंसा पाने लिखता हूँ,
न तालियों के शोर के लिए,
मैं लिखता हूँ अपने मन को सहलाने,
कविता मेरी आत्मा की दवा है।
हर पंक्ति मेरी साँस है,
हर विचार एक दर्पण,
कविता मेरा शौक़ नहीं,
ये आत्मा का सम्बन्ध है।
जी आर कवियुर
20 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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