Wednesday, August 13, 2025

अकेले विचार – 101

अकेले विचार – 101

तेरी आँखों में एक शांत सागर है,
भूली हुई लहरों की फुसफुसाहट समेटे।
कभी साहसी जहाज़ अब साये में सोए हैं,
लंगर अनजान रेत में दबे हैं।

जो नक़्शे कभी चमकते थे, अब फीके पड़ गए,
सितारे अब राह नहीं दिखाते।
उम्मीदें स्थिर जल पर पत्तों-सी बहती हैं,
कहानियाँ गहराइयों में बंद हैं।

हँसी की गूँज लहरों के नीचे सोती है,
कदमों के निशान बदलते किनारों पर मिट जाते हैं।
फिर भी उस गहराई में एक मौन वादा चमकता है,
कि खोए हुए सपने भी कभी सुबह पाएँगे।

जी आर कवियुर 
14 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

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