Sunday, August 24, 2025

मीनार की लिफ्ट"

 मीनार की लिफ्ट"


हर मंज़िल पर लोहे का दरवाज़ा

खुलता विशाल,

फौरन बंद हो जाता,

स्वागत करते क़दम भीतर आते।


अलग–अलग ज़बानों की आवाज़ें,

भिन्न–भिन्न चेहरे,

एक ही चौकोर फ़र्श पर

सभी साथ सिमट जाते।


बच्चे की हँसी,

दादाजी की थकी साँस,

मोहब्बत की मुस्कानें,

ग़ुस्से की चिंगारियाँ।


बड़े–छोटे बक्से लुढ़कते,

शॉपिंग बैग झूलते,

कठिन क्षण पीछा करते।


बातें इशारे करतीं,

ख़ामोश राज़ बाँटे जाते,

इच्छा की एक झलक,

ममता का एक हल्का स्पर्श।


ख़ुशियाँ ऊपर चढ़तीं,

ग़म नीचे उतरते,

सपने और बोझ

ख़ामोशी में संग चलते।


सुबह से गहरी रात तक,

लिफ्ट अनकही कहानियाँ सँभालती,

ज़िंदगियाँ उलझकर

गलियारों और कमरों में धड़कनों सी बहतीं।


हर बीते पल में,

हर मुस्कान, हर आँसू,

लोहे की ख़ामोश दीवारों पर

उभर जाते निशान—

जैसे वक़्त बहा ले गया ज़िंदगी के साये।


और एक दिन

जब दरवाज़ा आख़िरी बार बंद होगा,

लिफ्ट ख़ामोशी से सँजोए रखेगी

यादों के वो अमिट निशान।


जी आर कवियुर 

24 08 2025

No comments:

Post a Comment