जहां हंबर की धारा बहती,
मैं बैठा चुपचाप, यादों में लिखती।
मुलायम मोड़ों से उसने कही,
झील से अपनी दास्तां सही।
चट्टान पर बहती ठंडी हवा,
शहर की रौशनी थी जैसे दवा।
हृदय की पुस्तक में भरकर प्यार,
लिखे शब्द बन गए शायर।
गंगा की कृपा, पंपा का राग,
हंबर भी बहती है वही सुगंधी भाग।
जहां नदी झील में समा गई,
मेरी सोच संगीत में बहा लाई।
जी. आर. कवियूर
04 08 2025
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