Monday, August 11, 2025

विद्यारंभ

विद्यारंभ 

नई राह शुरू होती है दिल से भरी,
ज्ञान की रोशनी जगाती है उम्मीदें।
नन्हे हाथ थामते हैं सीखने की चाबी,
अज्ञात का द्वार खुलता है धीरे-धीरे।

धीमे स्वर में प्रार्थना की आवाज़,
ज्ञान के बीज बोते हैं हम सब।
चमकती आँखें उत्सुकता से भरी,
सच्चाई की राह दिखती है धीरे-धीरे।

पुरानी बातें, कहानियाँ सुनाकर,
सपने जागते हैं, भविष्य बनता है।
हर कदम पर मन बढ़ता जाए,
इस पवित्र संस्कार को हम न भूलें।

जी आर कवियुर 
12 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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