Friday, August 1, 2025

दिल में समाए ख़्वाब" ( ग़ज़ल)

दिल में समाए ख़्वाब" ( ग़ज़ल)

जो कह न सके, वो दिल में समा गए,
तन्हाई में बिखरे ख़्वाब फिर सताए।

ख़ामोश लबों ने शिकायत न की,
आँखों की नमी ने फ़साना सुनाए।

वो पल जो गुज़रे थे तेरे करीब,
अब याद बनके हरदम रुलाए।

साए भी अब साथ छोड़ने लगे,
जब दर्द ने हर रिश्ता आज़माए।

उम्मीद की लौ भी बुझने लगी,
जब हर दुआ ने लौटकर ज़ख़्म दिखाए।

'जी आर' की ग़ज़ल में सन्नाटा बसा है,
हर मिसरा दिल का दर्द कह जाए।

जी आर कवियुर 
01 08 2025 

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