Sunday, August 17, 2025

सीमाएँ

सीमाएँ

खामोश ज़मीन पर लकीरें बनी,
पहाड़ों पर चौकियाँ खड़ी।

नदियाँ मुड़कर बहती जातीं,
हवाएँ गुजरतीं बिना रुके।

पत्थरों से दीवारें उठीं,
सपनों ने राहें खोजीं।

पंछी उड़ते बिना इजाज़त,
बादल मिलते सागर से।

नज़रें तड़पें अपनापन पाने,
आशा टिके कठिन समय में।

हाथ जुदा हों पर सुर मिलें,
प्यार मिटा दे सारी सीमाएँ।

जी आर कवियुर 
18 08 2025 

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