Wednesday, August 6, 2025

नदियों की यादों में — हम्बर के किनारे

नदियों की यादों में — हम्बर के किनारे

हम्बर किनारे चाँदनी छाई,
ओंटारियो की लहरों ने धुन सुनाई,
टोरंटो का टावर आँखों में बसा,
कवि के मन की घाटी में
हवा संग सपनों ने पंख लगा लिया।

रास्ते, लोग, चलती गाड़ियाँ,
रेल की पटरी, उड़ती कारें,
इंसान ने जो आकाश छू लिया,
उन इमारतों के बीच
प्रकृति भी मुस्कुरा उठी हर दिशा।

विविध भाषाएँ, रंग-बिरंगे लोग,
न कोई भेदभाव, न कोई वियोग,
एकता की ख़ुशबू फैली है यहाँ,
सब देख खड़ा हूँ चुपचाप वहाँ,
जहाँ आसमान को छूती है आँखों की नमी।

गंगा, यमुना साथ जो आई,
कावेरी, भारतपुज़ा की परछाई,
पेरियार, पम्पा दिल में समाए,
मणिमला की ममता भी संग आए,
भारत के इतिहास की सोच में खोए,
अब मैं भी हम्बर की लय में गाऊँ, भाई।

जी आर कवियुर 
(कनाडा , टोरंटो)
06 08 2025

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