“छाया तक रुठी” (ग़ज़ल)
मेरी छाया भी मुझसे रुठ गई है
तेरे बारे में अब क्या कहना है
हर एक मोड़ पे तन्हा छोड़ दिया
इस सफ़र का फिर क्या तजुर्बा कहना है
तेरी यादें भी अब बातें कम करती हैं
शायद दिल को अब समझना कहना है
लब ख़ामोश हैं, पर आँखें बयां कर जाएँ
इस दर्द का अब और क्या कहना है
जो भी जिया, तुझसे ही जुड़ा था "जी आर"
अब तेरे बिना तो बस जीना कहना है
जी आर कवियुर
05 08 2025
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