Monday, August 25, 2025

अतिमोह

अतिमोह

आकांक्षा छुपी हुई अग्नि-सी जलती,
सपनों की डोर गगन तक चलती।

अनंत लाभ पाने को हाथ बढ़ जाते,
हृदय सुख भूलकर दुःख अपनाते।

स्वर्ण की चाह जब नभ छूने लगती,
सत्य बिखरकर झूठों में ढकती।

अंधे मार्ग पर कदम डगमगाते,
शांति खोकर दिन रात में समाते।

लोभ रचता आत्मा के चारों ओर दीवार,
छाया निगलती हर मंज़िल हर बार।

प्रेम ही तोड़े बंधन की बेड़ी,
सरल जीवन देता पीड़ा से मुक्ति स्थायी।

जी आर कवियुर 
25 08 2025
( कनाडा , टोरंटो)

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