बिना बुलाए काले बादल घिर आते,
छायाएँ रेंगतीं, मन टूट जाते।
सूनी गलियों में आँधी गरजती,
खामोशी में तूफ़ान डर से मिलती।
पेड़ झुकते प्रकृति की शक्ति के आगे,
बेचैन रात में घर काँपते जागे।
नदियाँ तोड़ें अपने धैर्य के बंधन,
बिना शोर फैलाएँ संकट का प्रसंगन।
फिर भी मलबे में उम्मीद उगती,
हाथ मिलाकर गर्माहट जगती।
हर परीक्षा रास्ता बनाती,
एक उजले, शांत दिन को लाती।
जी आर कवियुर
10 08 2025
कनाडा ,टोरंटो
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