Monday, August 18, 2025

बचपन की प्रतिध्वनियाँ

बचपन की प्रतिध्वनियाँ 

बच्चे दौड़े उस सड़क पर, जहाँ सूरज नाचा,
नंगे पाँव, खुले दिल, हाथ में हाथ थामा।
सुबह की राहें हँसी से रंगी हुई,
सपने खिले धीरे-धीरे, बिना किसी लाभ के।

अब ऊँची इमारतें खेल के मैदान को छुपा रही हैं,
पैसे की गूँज हर ओर ऊँची आवाज़ में गूंज रही है।

पालतू जानवर गर्व से टहलते हैं,
और छोटे बच्चों का प्यार अब दुर्लभ है।

शामें अब समयसीमा की हैं, खेल की नहीं,
बच्चे आते हैं, फिर चुपचाप दूर चले जाते हैं।

स्क्रीन ने खेलों को बदल दिया, हँसी अब फीकी,
मानवता की गर्माहट अब नाजुक और हल्की।

फिर भी शांत कोनों में यादें चमकती हैं,
सादगी भरे सुख और खोए हुए सपनों की झलक।

दुनिया भले ही भूल जाए, पर दिल अभी भी मानते हैं:
बच्चों के लिए प्यार हर कहानी से महत्वपूर्ण है।

जी आर कवियुर 
18 08 2025
( कनाडा, टोरंटो)

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