Friday, August 22, 2025

बहुत दुख की बात है

बहुत दुख की बात है

खाली छतों पर बारिश की बूँदें गूँजती हैं,
मृदु हवा भूले हुए सच को धीरे-धीरे जगाती है।

जिस रास्ते पर कभी उजाला फैला था, वह अब फीके रंग में ढल गया,
यादें ठहरी रहती हैं, नाचने से मना करती हैं।

आँखें शांत दर्द की कहानियाँ समेटे हैं,
दिल धीरे-धीरे उस मृदु बारिश में दर्द झेलता है।

जले हुए दीवारों से आवाजें बहती हैं,
समय धीरे-धीरे घूमता है, पर अंधेरा पुकारता है।

गहरे आसमान के नीचे जीवन धीरे-धीरे चलता है,
दुःख फैलने पर सपने विलीन हो जाते हैं।

फिर भी हर छाया में एक गीत बचा रहता है,
हानि की धुन, मीठा और क्षीण।

जी आर कवियुर 
22 08 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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