भारत में खड़ी है चुपचाप अकेली,
कभी थी चिट्ठियों से भरी गली-गली।
राहों में डाली जाती थी आस,
अब मोबाइल ने ले लिया है विश्वास।
ईमेल की चमक, संदेश की उड़ान,
स्याही की खुशबू, आंसुओं का गान।
भीड़ की आवाजें अब खो गईं,
खामोशी की चादर में ढक गईं।
कनाडा की झील के पास सुर्ख डिब्बा,
अब भी खड़ा है मुस्कान लिए सच्चा।
स्टाम्प लगी चिट्ठियां अब भी चलतीं,
कागज़ पर मोहब्बतें अब भी पलतीं।
दो दुनिया का ये किस्सा कहता,
एक भुला, एक अब भी रहता।
जी आर कवियुर
17 08 2025
(कनाडा, टोरंटो )
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