Tuesday, August 5, 2025

मोगरे की ख़ुशबू, मेपल की सर्दी और नींद-रहित दिनक्या ये अजीब है

मोगरे की ख़ुशबू, मेपल की सर्दी और नींद-रहित दिन


क्या ये अजीब है — नींदहीनों रातों पर लिखना?
कोहरे की बूँदों संग मैं मेपल की हवा में उतरा।
आँखें रो पड़ीं मोगरे की मुस्कान को तरसकर,
यहाँ चुप्पी बर्फ़ की तरह धीरे-धीरे गिरती है।

मंदिर की घंटियाँ कभी पवित्र समय को गाती थीं,
अब सड़कों की बत्तियाँ ठंडी और मौन हैं।
सोचें फैलती हैं आम के कोमल पत्तों की छाँव में,
तन किसी अनजाने चाँद के नीचे नींद को तरसता है।

कौवों की पुकार अब सुनाई नहीं देती,
यहाँ का चाँद अपरिचित सुरों में कुछ कहता है।
सुबह की पहली किरण प्रार्थना जैसी शांति लाती है,
जहाँ मन टिकता है, वहाँ शरीर को भी सुकून मिलता है।

जी आर कवियुर 
(कनाडा , टोरंटो)
05 08 2025

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