Sunday, December 8, 2024

मोहब्बत का सफर (ग़ज़ल)

मोहब्बत का सफर (ग़ज़ल)

मिला दे मुझे, ऐ रब, कहीं तो,
जो खोया है, वो अब यहीं तो।

वो चेहरे की मासूमियत क्या कहें,
सजा है माहौल में, वहीं तो।

नज़र से नज़र का हुआ था जो खेल,
वो एहसास अब तक हसीं तो।

सफ़र ज़िंदगी का हुआ है कठिन,
मगर साथ हो, तो यक़ीं तो।

जो लहरों में बहता है ग़म रातभर,
तेरी बाहों में हो अम्न वहीं तो।

तेरे करम से ये दिल जुड़ा है,
मोहब्बत का रिश्ता, यहीं तो।

जी आर ने जो लफ़्ज़ गढ़े हैं,
हैं दिल की सदा के मकीं तो।


जी आर कवियूर
09 12. 2024

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