Saturday, December 14, 2024

"यादों की ग़ज़ल"

"यादों की ग़ज़ल"

चाँदनी बरसती रात में,
जाम के प्याले टकराए,
यादें कुछ नरम सी,
आँखों में नमी छाई।

हवा की मिठास क्या शामिल नहीं?
तेरी बातें फिर से सुनने की ख्वाहिश,
गहराई में लिखते हुए दर्द,
आँखें आज भी इंतजार करती हैं।

मोहब्बत के पर्दे के पीछे,
कहीं छुपा था वो जादू,
तब खामोशी भी थी जैसे,
रंगीन दिलों का एक सिलसिला।

प्रणय की राहों में बसी यादें,
गुज़रे लम्हों की कोई तस्वीर,
वो सुनहरे दिन थे, कहीं खो गए,
आज भी 'जी आर' के दिल में 
उनकी गूंज सुनाई देती है।

जी आर कवियूर
14-12-2024

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