Tuesday, December 10, 2024

"तन्हाई की कशिश"(ग़ज़ल)

"तन्हाई की कशिश"(ग़ज़ल)



जाने क्यों तेरी यादें इतना सताती हैं,
बेरहम क्यों दुनिया के हालात हमें रुलाते हैं।

तन्हाई में भीगते हैं अश्कों के साए,
बिना वजह हर घड़ी ये दर्द जगाती हैं।

दिल ने चाहा तुझे मगर तक़दीर से हारा,
तेरी मोहब्बत भी मेरे अश्कों से जलाती है।

अब तो ख्वाबों में भी तेरा अक्स रूठा है,
यह तन्हाई मेरे जख्मों को बढ़ाती है।

ग़म के सागर में खो गया मेरा वजूद,
हर आह मेरे दिल को और लहराती है।

इस दुनिया की रीत समझ आई अब मुझे,
"जी.आर." कहते हैं कि तन्हाई ही सुकून दे जाती है।

जी आर कवियूर
10 12. 2024


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