मोबाइल ने किया हमारा पीछा, आगे बढ़ते गए
समय का पहिया पीछे छूट गया
आंखें स्क्रीन पर चमकने लगीं
जीवन अब पूरी तरह से स्क्रीन में समा गया।
उंगलियों के नृत्य में दिन बहते गए
प्रेम और दोस्ती फीकी पड़ गई
संपर्क खोते गए, रास्ते में
तस्वीरों और वीडियो में बसा गया।
सोचें अब सीमित हो गईं चैट शब्दों में
दिलों के रिश्ते दूर होते गए
बिना ताल के, जैसे एक बारिश का ज्वार
इंसान अब ताल छोड़कर रुक गया।
जी आर कवियूर
06 12. 2024
* मोबाइल फोन
विघ्न भी करता है,
और सहायक भी।
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