(एक ग़ज़ल)
अकेला पड़ गया हूँ,
तेरी यादों की वीरानियों में,
सोचते सोचते, सूख गई है मेरी कलम,
लिखने को न रहे अब सात तन्हाइयाँ।
दिल में अब बस तन्हाई का साया है,
तेरे बिना, हर एक राह सुनसान सी लगती है।
हवाओं में तेरा नाम भी खो गया है,
हर धड़कन में अब सिर्फ खामोशी बसी है।
तेरी हँसी की गूंज, अब लफ्जों में कहाँ,
जो थी कभी रोशनी, वो अंधेरों में बदल गई।
सपनों में भी तेरा चेहरा धुंधला गया,
वो जो कभी मेरा था, अब मेरी तन्हाई बन गया।
कभी जो ख्वाबों में बसा था, अब वह डर बन गया,
तेरे बिना इस जिंदगी का कोई असर नहीं रहा।
ये दिल अब तुझसे बिछड़कर जिंदा है,
क्योंकि तन्हाइयाँ ही अब मेरी ज़िन्दगी बन गईं।
और फिर, अब इस दर्द का कोई इलाज नहीं,
जी आर ने, तुझे खोकर जीने की मेरी आदत नहीं।
जी आर कवियूर
16 -12-2024
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