Wednesday, December 4, 2024

एक मुद्दत का इंतज़ार" (ग़ज़ल)

एक मुद्दत का इंतज़ार" (ग़ज़ल)


मुद्दतों से तेरी याद में जी रहा हूँ,
कदमों में कैसे छाले पड़ गए हैं।

हर एक ख़्वाब में तेरा अक्स दिखे,
आँखें बंद करूँ तो तेरा नूर जागे।

भूल चुका हूँ क्या कहूँ ये कहानी,
आँसू भी अब तो सूख चुके हैं।

लबों पे फिर भी तेरा नाम बाकी,
दिल में तेरा खयाल बसा हुआ है।

तेरी मोहब्बत का दिया है जल रहा,
ख़्वाबों में तेरा चाँद सा चेहरा।

'जी आर' की हर ग़ज़ल तेरे लिए है,
शेरों में तेरी रूह बसती है।

जी आर कवियूर
05 12. 2024

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