Tuesday, December 10, 2024

"दिलबर की आहट" (ग़ज़ल)

"दिलबर की आहट" (ग़ज़ल)

चांद खिड़की से
छाया बनकर झांका,
दिल में उठी हलचल
दिलबर की आने की झलक।

चंदन-सी महक उठी,
निंदिया भी खो बैठी,
बातें करते रहे रात भर,
किसको भी यह नहीं मालूम।

हवा ने कहा कुछ,
फिज़ा में बसी आहट,
दूरी का एहसास लिए
सांसें भी थमने लगीं।

हर पल की उम्मीद में,
दिल बेक़रार रहता है,
राहों में बिछे ख्वाब,
उसकी सूरत के लिए।

जी आर ने आस बांधी,
रातें चांदनी बन जाएं,
दिलबर के कदमों की आहट,
दिल को सुकून दे जाएं।


जी आर कवियूर
11 12. 2024

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