Friday, December 27, 2024

"ग़ज़ल: देह और आत्मा का अंतर"

"ग़ज़ल: देह और आत्मा का अंतर"

त्याग दे यह मोहपांन देह का,
आजमालों ये आत्मा की आवाज को।
देह का आकर्षण, मोहपांन में बंधा,
सभी इन्द्रियों की तृप्ति, क्षणिक सुख में लहराता।
माया के जाल में फंसी, यह देह समय की लहरों से खेती,
पर यह नश्वर है, एक दिन खो जाती है, मिट जाती है।

लेकिन आत्मा, वह शाश्वत स्वर,
जो अनंत काल से परे, एक स्थिरता का अनुभव करती है।
देह की सीमाओं को पार कर, वह उच्चतम सत्य की ओर बडी,
स्वाभाविक रूप से निराकार, न रुकने वाली, न खत्म होने वाली।

आत्मा की आवाज़ सुन, देह के मोह को छोड़,
अविनाशी उस तत्त्व में समाहित हो, जो सब में बसा है।
जब तक हम इस यात्रा को समझ पाते हैं,
तब तक देह की दुनिया एक सपना लगती है,
आत्मा की असली सत्ता में खो जाने का मार्ग ही है।

त्याग दे यह मोहपांन देह का,
आजमालों ये आत्मा की आवाज को।
जी आर कहे, "देह के बंधन को तोड़कर, तुम आत्मा के सच को पहचानो,
तब ही जीवन के वास्तविक अर्थ को पा सकोगे।"

जी आर कवियूर
28-12-2024

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