मेरे भीतर कुछ सा महसूस होता,
जैसे ठंडी हवाओं संग धुंध महकता।
शाम के सन्नाटे का संगीत,
दिल को छूता है कोई अज्ञात गीत।
ठंडी सांसों में भीगी यादें,
ले आती हैं बीते लम्हों के बादल।
मन के कोनों में खिला सवेरा,
फिर भी छुपा हुआ है अंधेरा।
धुंध में लिपटा एक एहसास,
जैसे कोई गुमशुदा पास।
कहीं गहराई में कोई बात छिपी,
दिल की महक से दुनिया जुड़ी।
जी आर कवियूर
02 12. 2024
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