तहरीरों में बस आपका नूर है,
वरना ये कलम भी चलना न जानती।
आपने जो ज़मीन दी, उस पर खिले हैं गुल,
वरना ये धड़कन भी ग़ज़ल नहीं मानती।
हर एक अल्फ़ाज़ में बसते हैं आप,
जो दिल के राज़ बयां कर जाते हैं।
शायर जो भी लिखता है, वो आपका अक्स,
आपकी तारीफ में ही नग़मे बन जाते हैं।
शायर कहते हैं, आप ही हैं वजूद,
जो अल्फ़ाज़ को सूरत देते हैं।
वरना ये शायरी अधूरी रहती,
अगर आप एहसास न देते हैं।
जी आर कवियूर
13 12. 2024
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