Monday, December 9, 2024

"स्वरों की गहराई"

"स्वरों की गहराई"

जो सुर से गा न सके वो दिल की बात,
आँसू बरसे, बूँदों में छेड़ा संगीत।
स्वरों की नदी में सप्त स्वर जब,
धीरे-धीरे आत्मा की गहराई में उतरे।

दिल के मंदिर में खामोशी ने डेरा डाला,
नृत्य किया, ताल दी, गाना फिर चला।
रात-दिन जो गवाह बने, चुपचाप सुनते,
जैसे अनुभवों ने हर पल सहेजा हो।

जो सुर से गा न सके वो दिल की बात,
आँसू बरसे, बूँदों में छेड़ा संगीत।
स्वरों की नदी में सप्त स्वर जब,
धीरे-धीरे आत्मा की गहराई में उतरे।

संघर्ष में भी जो सुर बरसाते,
मगर बादलों से भरा आसमान बने।
जीवन की शाम में प्रेम जब जागा,
सुरों का सफर सत्य की ओर बढ़ चला।

जो सुर से गा न सके वो दिल की बात,
आँसू बरसे, बूँदों में छेड़ा संगीत।
स्वरों की नदी में सप्त स्वर जब,
धीरे-धीरे आत्मा की गहराई में उतरे।

जी आर कवियूर
09 12. 2024

No comments:

Post a Comment