कैसे भूल पाऊँ मैं वो बीते हुए लम्हे
आज भी तरसता है दिल उनके लिए हर लम्हे
वो हँसी जो छुपी थी कभी ग़म के हर लम्हे
अब भी आके रुला जाती है दम के हर लम्हे
तेरी यादों की खुशबू जो महके नरम से
छू जाती है रूह को बहकाए ये हर लम्हे
जो कहा था कभी तुमने सादगी से प्यार में
गूंजते हैं वही शब्द अब भी ज्यों हर लम्हे
हमने चाहा था बाँधना तुझे अपने सरगम से
बिखर गए ख्वाब सारे टूटे सुर के हर लम्हे
‘जी आर’ को अब भी है तेरा ही इंतज़ार हर लम्हे
तेरे बिना अधूरी सी लगती है उमर हर लम्हे
जी आर कवियुर
०१ ०६ २०२५
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