Wednesday, May 28, 2025

ग़ज़ल: तेरे बिना रातें

ग़ज़ल: तेरे बिना रातें

तेरे बिना ये रात बहुत सूनी लगती है
हर शय में तेरी याद ही बसती लगती है

खामोश हैं तारे भी, चांद भी है गुमसुम
इस दिल की तन्हाई कहीं सच्ची लगती है

चलते हैं कहीं साए तेरे नाम के जैसे
हर राह मुझे फिर से तेरी लगती है

आँखों से छलकते हैं कुछ ख्वाब अधूरे से
हर बात अधूरी सी ही लगती लगती है 

आवाज़ तेरी जब भी हवा लाती है सनम
सीने में दबी आग भी जलती लगती है

'जी आर' तेरा नाम ही जपता है हर पल
दुनिया से ये दीवानी भी कटती लगती है

जी आर कवियूर 
२८ ० ५ २०२५

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