जन्म की घड़ी में
एक चेहरा झलक पड़ा जैसे रौशनी पहली बार मिली हो।
शब्दों से पहले
एक छुअन ने मुझे जीवन की गोद में रखा।
हथेलियाँ — जैसे कोई शांत तीर्थ,
स्वर — जैसे सुबह की पहली प्रार्थना।
मुस्कान के पीछे छुपा दर्द,
सब कुछ लुटा दिया, कभी कुछ माँगा नहीं।
जब समय सख़्त हुआ और दुनिया अजनबी,
एक मौन आंचल ने मुझे ढँक लिया।
हर गिरावट में साथ चलती परछाईं,
हर सफलता के पीछे एक अदृश्य साहस —
एक दीप जो कभी न बुझे — माँ।
जी आर कवियुर
२३ ०५ २०२५
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