Sunday, May 18, 2025

सरहद की छांव में"

सरहद की छांव में"

चलते हैं वीर बिना थके, तूफ़ानों से खेलते हैं,
धरती माँ की गोद बचाने, छावनी में ढलते हैं।
नींद नहीं है पलकों में, हर जागरण है बलिदान,
हथियारों की लोरी गाती, उनकी हर एक पहचान।

धूप हो या बर्फ़ की चादर, उनका संकल्प अडिग,
हर सर्द रात में जलती है, राष्ट्रप्रेम की एक दीपक।
माँ के आँचल से दूर रहकर, देश को देते स्नेह,
हर पग पर उनका नमन है, हर साँस में है गेह।

वो हैं प्रहरी स्वाभिमान के, सम्मान का है स्वर,
उनके कारण महकता है, हर कोना, हर प्रहर।
हम नमन करें उन रक्षकों को, जिनसे जीवन है रोशन,
जय हिन्द कहे हर धड़कन, उनका गौरव हो अमर।

जी आर कवियुर 
१८ ०५ २०२५

No comments:

Post a Comment