शांतिपथ
ना हो रणभेरी की गर्जना,
सुनाई दे केवल शांति की वाणी।
शस्त्र रहें निष्क्रिय धूल तले,
नेता हों सहज, निष्ठावान ज्ञानी।
न हो विस्तार की कोई लालसा,
न्याय से हो हर विवाद की भाषा।
न चलें तलवारें, बोले विचार,
प्रेम से बंधे हर एक व्यवहार।
क्रोध झरे जैसे पतझड़ पत्ता,
दया बने दुख में गीली छाता।
वैर गल जाए हिम की तरह,
प्रकाश उगे जहाँ मेल हो गहरा।
जी आर कवियुर
१३ ०५ २०२५
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