Wednesday, May 7, 2025

एकांत विचार – 33




एकांत विचार – 33

ये धरती पर सफर कुछ पलों का ही तो है,
छांव में यादें धीरे-धीरे चलती हैं।
जब "मैं" का भाव थोड़ा पीछे हट जाता है,
तो खामोशी भी प्यार की बोली बन जाती है।

ज़रूरत की ओर नजर टिकती है जब,
ग़ैरज़रूरी चीज़ें खुद-ब-खुद छूट जाती हैं।
एक वियोग से रिश्ते टूट सकते हैं,
मोहब्बत की गांठें चुपचाप खुल जाती हैं।

बिन उत्तर शब्द भी शांत हो जाते हैं,
जहाँ भेद मिटे वहाँ सुकून खिलता है।
समय जैसे पवन बहकर चला जाता है,
जीवन एक निर्मल प्रार्थना बन जाता है।


जी आर कवियुर 
०७ ०५ २०२५

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