यात्रा ज़िंदगी बन जाए!
यात्रा पे निकला ये दिल उड़ चला,
रास्तों में खुलते हैं ख्वाब नया।
साए पीछे भागे कहीं,
नई नजरों में दिल भी भीग चला।
हमसफर बनके चलो साथ में,
इन राहों में कोई धोखा नहीं।
आँखों के आँसू जैसे सपने,
तुमसे मिलना ही तो चाहत सही।
ठंडी हवा जब छूने लगे,
आधी रात गुनगुनाने लगे।
नदियाँ, पहाड़ मिलकर रचें,
यात्रा संग एक नयी कविता कहें।
हमसफर बनके चलो साथ में,
इन राहों में कोई धोखा नहीं।
आँखों के आँसू जैसे सपने,
तुमसे मिलना ही तो चाहत सही।
यादें और हँसी भी साथ चलें,
धड़कनों में कोई गीत सा बहे।
अनदेखे शहर पहचान देंगे,
लौटने तक ये सफ़र ख़ुशियों से भरे।
नवभारत की ओर चल पड़ा पैग़ाम,
पेड़ों की छाँव, इंद्रधनुष का सलाम।
दो रंगों का मिलन यहाँ,
हमारी भी हो कोई यात्रा वहां।
हमसफर बनके चलो साथ में,
इन राहों में कोई धोखा नहीं।
आँखों के आँसू जैसे सपने,
तुमसे मिलना ही तो चाहत सही।
हवा के संग चलें मुस्काते,
इस यात्रा में बार-बार गाते।
नए गीत बनते जाएँ हर मोड़,
यादों में ये पल सदा मुस्कुराते।
जी आर कवियुर
२९ ०५ २०२५
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