एकांत विचार – 47
हम जो शब्द बोलते हैं
हम हर दिन सावधानी से अपना भोजन चुनते हैं,
और हर तरह से सोच-समझकर कपड़े पहनते हैं।
फिर भी हम जो कहते हैं, हम अक्सर चूक जाते हैं,
एक लापरवाह शब्द, एक पल की फुफकार।
अंदर से, हमारी आवाज़ उठती है,
बिना मापे विचार, कोई शांति नहीं, कोई दिखावा नहीं।
जो कुछ भी बोला जाता है उसे मिटाया नहीं जा सकता,
कुछ दिलों को तोड़कर, गहराई से छूकर छोड़ जाते हैं।
इसलिए शब्दों को उड़ने देने से पहले रुकें,
वे वापस आकर आपको रुला सकते हैं।
दयालु बनें, कोमल बनें, इस पर गहराई से सोचें—
जो आपके होठों से निकलता है, वह सच को आकार दे सकता है।
जी आर कवियुर
१९ ०५ २०२४
No comments:
Post a Comment