समुद्र गहरा है, रंग है नीला,
जैसे दिल में छुपा हर एक पीड़ा।
लहरें आती हैं, फिर लौट जाती,
कुछ अनकही बातें संग ले जाती।
हर बूँद में आंसुओं का अंश,
दर्द छुपा है उसका हर स्पर्श।
प्रेम की पुकार वो करता रहा,
उसका इंतज़ार भी चलता रहा।
किनारे से करता है संवाद,
पर मिलन हो पाए ये भी न संभव।
फिर भी हर लहर कहती है ये बात—
"तू मेरा अक्स है, चल आ, रो लें साथ।"
जी आर कवियुर
२८ ०५ २०२५
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