Wednesday, May 14, 2025

सूरज का पुनर्जन्म

सूरज का पुनर्जन्म

अनंत दिनों का अंत
सूरज की मद्धिम आभा में समा जाता है।
सांझ की नीरवता में
रंग फीके होकर बहते हैं,
आकाश पीली आभा में पिघलता है,
बादल धीरे से परछाईं बनते हैं।

गर्मी पीछे हटती है,
निशा धीरे-धीरे फैलती है,
पर्वत अंधकार में विलीन होते हैं,
छायाएं दूर तक उड़ जाती हैं।

प्रकाश ढलता है,
दोपहर सिमट जाती है,
रात आंखें खोलती है,
अंधेरा बहने लगता है।

आकाश गहरा नीला हो जाता है,
पक्षियों की चुप्पी अकेलापन कहती है,
हवा धीमे से बहती है,
पेड़ों की शाखें झुक जाती हैं।

ज्वालाएं मंद पड़ती हैं,
रोशनी क्षीण हो जाती है,
लगातार इंतजार में
तारें जाग उठती हैं।

समय प्रहरी बन जाता है,
चंद्रप्रभा पीछे हटती है,
सपने साँस लेने लगते हैं,
हृदय शांति में विलीन होते हैं।

धुंध बिखरने लगती है,
तारे नृत्य करते हैं,
सिहरन तन में समा जाती है,
पत्ते मूक साक्षी बनते हैं।

तारे खोने लगते हैं,
अंधेरा हटता है,
चंद्रकिरणें
रात को चीरकर निकलती हैं।

पर्वत शिखर रोशनी से चमकने लगते हैं,
पक्षी नई ध्वनि में गाते हैं,
आकाश खुलकर निखरता है,
हृदय अग्नि-साक्षी बनकर जागते हैं।

पूरब का क्षितिज सुर्ख होता है,
बादल सुनहरी आभा में जलते हैं,
आशा फिर से जन्म लेती है,
आत्माएं चमकने लगती हैं।

फूल कांपते हैं,
हवा चूमती है,
भोर धीरे से कदम रखती है,
शांति नया वस्त्र पहनती है।

जी आर कवियुर 
१४ ०५ २०२५


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